Book Title: Natyadarpan Hindi
Author(s): Ramchandra Gunchandra, Dashrath Oza, Satyadev Chaudhary
Publisher: Hindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
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भपना यह काव्य हेमचन्द्र के शिष्य पुणचन्द्रर्माण तथा वर्षमानगरिण को सुनाया था, इस प्रकार का उल्लेख उन्होंने स्वयं इस प्रकार किया है
शशिजलधिसूर्यवर्षे शुचिमासे रविदिने सिताष्टम्याम् । जिनधर्मप्रतिबोष: क्लृप्तोऽयं गुर्जरेन्द्रपुरे ॥ हेमसूरिपदपंकजहंस: महेन्द्र मुनिपः श्रुतमेतत् ।
वर्षमान-गुणचन्द्रगरिराभ्यां साकमाकलितशास्त्ररहस्यैः ।।
इन श्लोकों में वर्षमान तथा गुणचन्द्र दोनों के नामों का उल्लेख साथ-साथ किया है और उन्हें प्राचार्य हेमचन्द्र का शिष्य बतलाया है। इससे ये दोनों भी नाटघदर्पणकार रामचन्द्र के सहपाठी सिद्ध होते हैं। इनमें से गुणचन्द्र तो वे हैं जिन्होंने रामचन्द्र के साथ मिलकर इस प्रस्तुत ग्रन्थ 'नाट्यदर्पण' और उसकी स्वोपशवृत्ति की रचना की है। वर्धमानगणि ने भी 'कुमार विहारप्रशस्ति' नामक ग्रन्थ की व्याख्या की है। उसका परिचय निम्न लेख से मिलता है
__श्रीहेमचन्द्रसूरिशिष्येण वर्षमानगणिना कुमारविहारप्रशस्ती, काव्येऽमुष्मिन् षडर्थे कृतेऽपि कौतुकात् षोडशोत्तरं शतं व्याख्यानं चक्रे ।
४-५. देवचन्द्र मुनि तपा यशश्चन्द्रगरिण-ये दोनों भी प्राचार्य हेमचन्द्र के शिष्य और नाटपदर्पणकार रामचन्द्र के सहपाठी थे। इनमें से देवचन्द्रमुनि ने 'चन्द्रलेख विजय' नामक 'प्रकरण' (स्पक भेद) की रचना की है, और यशश्चन्द्रगणि का नाम मेरुतुङ्ग सूरि द्वारा विरचित 'प्रवन्धचिन्तामणि' में प्राचार्य हेमचन्द्र के शिष्य रूप में पाया जाता है।
६. उदयचन्द्र-इनके नाम का उल्लेख प्राचार्य हेमचन्द्र-विरचित शब्दानुशासन की न्यास टीका के लेखक कनकप्रम ने निम्न प्रकार किया है
भूपालमौलिमाणिक्य-मालालासितशासनः। दर्शनषट्कनिस्तन्द्रोहेमचन्द्रो मुनीश्वरः ।। तेषामुदयचन्द्रोऽस्ति शिष्यः संश्यावतां वरः। यावज्जीवमभूद् यस्य, व्याख्या ज्ञानामृतप्रपा । तस्योपदेशाद् देवेन्द्रसूरि शिष्यलवो व्यधात् ।
न्याससारसमुद्वारं मनीषी कनकप्रभः ।। ७. बालचन्द्र-रामचन्द्र के सहपाठियों में बालचन्द्र जी का भी विशेष स्थान है। इसके नाम की चर्चा हम अभी भाचार्य हेमचन्द्र की अन्तिम झांकी के प्रसङ्ग में करचुके हैं। रामा कुमारपाल की मृत्यु का कारण यही था, पोर पाश्वयं नहीं कि प्राचार्य हेमचन्द्र की मुत्यु भी इसी कारण हुई हो। कवि कटारमल की उपाधि
कवि रामचन्द्र का जन्म कर पार कहाँ हुमा इसका ठीक निर्णय करने का कोई साधन उपलब्ध नहीं है। सन् ११३६ में प्राचार्य हेमचन्द्र को, पयसिंह सिद्धराज के साथ परिचय होने के समय वे भावार्य हेमचन्द्र के विवापियों में थे। यह बात पूर्वोदत इलोकों के माधार पर मोबा.सकती है, और उससे यह परिणाम भी निकाला जा सकता है कि उनका जन्म गुजरात
हिम-पट्टन' के पास-पास ही कही हुमो होगा। तभी उन्हें प्राचार्य हेमचन्द्र के शिष्यत्व को बीमाबका प्रसार सरलता से मिन मया ।
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