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इस वास्ते आपने साढे बारां बर्व १५ दिन वो घोर तप किया कि जिसको सामान्य आदमी एक दिन तो क्या ? बल्कि एक घडीभर भी न कर सके । तप करते हुए आपने ६=६ महिने तक अन्न और पानी नहीं लिया । साढे बारां तक क्या रात और क्या दिन, प्रायः खडेही खडे निकाल । लोगोंने आपके पाओको चुल्हा बनाकर रसोई बनाई आपके कानोके साथ हिंसक मांसाहारी पक्षियों के पिंजरे बांध कानो में कोले गाडे, आंख नाक कान वगैरह कोमल मर्मस्थानोमें धूल भरदी. देवताई मानुषिक-सपादिकृत जिन उपद्रवों को आपने सहन किया है उनके सहन का बल आत्मधैर्य सहिष्णुभाव आपके सिवाय अन्य प्राकृतिक मनुष्य का न हुआ है और न होगा, इतना करते हुए भी निराशारूपी अंधकार उन्हें अंशस भी घेर नहीं सका । स यरूपी प्रकाश का उदय हुआ किकेवल ज्ञान कहीं दूर नहीं था। आप वीतराग हुए, सर्ववित् हुए, सर्वज्ञसर्वदशी हुए, और संसारको अपनी शिक्षा देने का उद्यम करने लगे ।
[सार और साफल्य ] बापकी शिक्षा थी कि प्रत्येक मनुष्य-चाहे वइ उच्च जाति का हो चाहे नीच जातिका हो मोक्षका अधिकारी है, जो मनुष्य पवित्रतापूर्वक जीवन व्यतीत करता है और अनाथों अनाश्रितोंपर दया करता है उसको यज्ञाद्वारा देवताओंकी प्रसन्नता करने की अपेक्षा इस क्रियासे अधिक लाम है, और अधिक लाभ भी धिर्फ अनादिके दानकी वृत्तिको लेकर हे वरन् पशुवध तो घोर दुःख का हेतु है ।
फिर आपका करमान था कि मनुष्य की वर्तमानदशा उपोके कर्मोका फल है, यह कर्म चाहे इस जन्म के किये हो चाहे पूर्वजन्म के । अव्यात्म दशाके विचारसे अपका फरमान था कि जीवनका अविकांश दुःखल्प है चाहे वह अपने को कितना भी सुखी क्यों न मानवा हो । इस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com