Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 53
________________ वती सभ्राट श्रीहर्ष था, क्या उस के समयमें भारत को किसीने पद दलित किया था ? अहिंसा मतका पालन करने वाला दक्षिणका राष्ट्रकूट वंशीय भूपति अमोघवर्ष और गुजरातका चालुक्य वंशीय प्रजापति कुमारपाल था; क्या इनकी हिंसोपासनासे देशकी स्वतंत्रता नष्ट हुई थी ? इतिहास तो साक्षी दे रहा है कि भारत इन राजाओंके राजत्व कालमें अभ्यु - दयके शिखर पर पहुंचा था | जब तक भारत में बौद्ध और जैन धर्मका जोर था और जब तक ये धर्म राष्ट्रीय धर्म कहलाते थे तब तक भारतमें स्वतंत्रता, शांति, संपत्ति इत्यादि पूर्ण रूपसे विराजित थी। अहिंसाके इन परम उपासक नृपतियोंने अहिंसा धर्मका पालन करते हुए भी अनेक युद्ध किये. अनेक शत्रुओंको पराजित किये और अनेक दुष्टजनोंको दण्डित किये । इनकी अहिंसोपासनाने न देश को पराधीन बनाया और न प्रजाको निवीर्य बनाया | जिनको गुजरात और राजपूतानेके इतिहासका थोडा बहुत भी वास्तविक ज्ञान है वे जान सकते हैं कि इन देशोंको स्वतंत्र, समुन्नत और सुरक्षित रखनेके लिये जैनौने कैसे कैसे पराकम किये थे । जिस समय गुजरातका राज्यकार्यभार जैनों के अधीन था-महामात्य, मंत्री, सेनापति, कोषाध्यक्ष आदि बडे वबे अधिकारपद जैनोंके अधीन थे—उस समय गुजरातका ऐश्वर्य उन्नतिकी चरम सीमा पर चढा हुआ था । गुजरातके सिंहासनका तेज दिग्दिगंत व्यापी था । गुजरातके इतिहासमें दंडनायक विमलशाहा, मंत्री मुंजाल, मंत्री शांतु, महामात्य उदयन और बाहड; वस्तुपाल और तेजपाल; आभू और जगह इत्यादि जैन राजद्वारी पुरुषोंको जो स्थान है वह औरोंको नहीं है। केवल गुजरात ही के इतिहासमें नहीं परंतु समूचे भारत के इतिहास में भी इन अहिंसाधर्म के परमोपासकों के पराक्रमकी तुलना रखनेवाले पुरुष बहुत कम मिलेंगे । जिस धर्मके परम अनुयायी स्वयं ऐसे शूरवीर और पराकमशाली थे और जिन्होंने अपने पुरुषार्थसे देश और राज्य को खूब Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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