Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 54
________________ ४७ समृद्ध और सत्वशील बनाया था; उस धर्मके प्रचारसे देशकी या प्रजाकी अधोगति कैसे हो सकती है ? देशकी पराधीनता या प्रजाकी निवीयतामें कारण मृत — अहिंसा ' कभी नहीं हो सकती। जिन देशोंमें हिंसा ' का खूब प्रचार है, जो अहिंसाका नाम तक नहीं जानते हैं, एक मात्र मांस ही जिनका शास्वत भक्षण है और पशुसे भी जो अधिक क्रूर होते हैं क्या वे सदैव स्वतंत्र बने रहते हैं । रोमन साम्राज्य ने किस दिन अहिंसाका नाम सुना था ? और मांस भक्षण छोडा था ? फिर क्यों उसका नाम संसारसे उठ गया । तुर्क प्रजामें से कब हिंसामाव नष्ट हुआ और क्रूरताका लोप हुआ ? फिर क्यों उसके सामान्यकी आज यह दीन दशा हो रही है ? आर्लेण्डमें कब अहिंसाकी उद्घोषणा की गई थी ? फिर क्यों वह आज शताब्दियोसे स्वाधीन होने के लिये तडफडा रहा है ? दूसरे देशों की बात जाने दीजिए-खुद भारत ही के उदाहरण लीजिए । मुगल साम्राज्यके चाल. कोंने कब अहिंसाकी उपासना की थी जिससे उनका प्रभुत्व नामशेष हो गया और उसके विरुद्ध पेशवाओने कब मांस भक्षण किया था जिससे उनमें एकदम वीरत्वका वेग उमड आया । इससे स्पष्ट है कि देशकी राजनैतिक उन्नति-अवनति में हिंसा-अहिंसा कोई कारण नहीं है । इसमें तो कारण केवल राजकर्ताओंकी कार्यदक्षता और कर्तव्यपरायणता ही मुख्य है । हां, प्रजाकी नैतिक उन्नति-अवनतिमें तत्वतः अहिंसा-हिंसा अवश्य कारणमूत होती है । अहिंसाकी भावनासे प्रजामें सात्त्विक वृत्ति खिलती है और जहां सात्विक वृत्तिका विकास है वहां सत्वका निवास है । सत्त्वशाली प्रज' ही का जीवन श्रेष्ठ और उच्च समझा जाता है इससे विपरीत सत्त्वहीन जीवन कनिष्ट और नीच गिना जाता है । जिस प्रजामें सत्त्व नहीं वहा, साति, स्वतंत्रता आदि कुछ नहीं | इस लिये प्रजाकी नैतिक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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