Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society
View full book text
________________
(४) 'कुदर्शनवजन'-मिथ्यादृष्टि विपरित श्रद्धावालेका परिचय न करना ।
[ तीन लिङ्ग] (५) शुश्रूषा-शास्त्रसिद्धान्तके सुननेकी तीव्र इच्छा । (६) धर्मराग-धर्मक्रिया प्रशस्त अनुष्ठान करनेमे अंतरंगप्रीति ।
(७) वेयावच्च-गुणवान साघु साध्वी श्रावक श्राविका की यथो'चित सेवा ।
[ १० प्रकारका विनय ] (८) अरिहंत विनय । (९) सिद्धविनय । (१०) चैत्यविनय । (११) श्रुतविनय । (१२) धर्मविनय । (१३) साधुविनय | (१४) आचार्यविनय । (१५) उपाध्यायविनय । (१६) प्रवचनविनय । ( १७ ) दर्शन विनय ।
[तीन शुद्धि] (१८) मनशुद्धि । ( १९) वचनशुद्धि । (२०) कायाशुद्धि ।
[पांच दोषोंका वर्जन ] (२१) शंकादोषका वर्जन । ( २२ ) आकांक्षा दोषका वर्जन |
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com

Page Navigation
1 ... 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108