Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 106
________________ कोनों से सुनते हुए भी अगर उसपर कुछ मी ख्याल न दें, कुछ मी परि शीलन न करें, तो मला हमने किया ही क्या ? समझा ही क्या ? आजके समय मे सातही क्षेत्रोंमे से चैत्य १ बिम्ब रसाधु ३साध्वी४ यह ही क्षेत्र समयानुसार पुष्ट हैं । सिर्फ घाटा है तो ज्ञान क्षेत्र, श्रावक प्राविका क्षेत्र इन तीन ही क्षेत्रों की सार संभालका है । ज्ञानके पुस्तकों का घाटा नहीं परंतु उनका फैलाव करनेवाले जैसे चाहिये वैसे थोडे हैं । ज्ञान पढानेकी संस्थाएँ हैं परंतु उनमे क्या पढाया जाता है ? जो पढाया जाता है वह बच्चों की जिन्दगी को सुधारता है या बरबाद करता है ? इन बातोंका निरीक्षण सूक्ष्म दृष्टि से करने योग्य है । उसमे मी खास करके वर्तमान समय की स्थिति तर्फ देखकर श्री संघको चाहिये कि वह " श्रावक और श्राविका " इन दोनों क्षेत्रोंको बचावें । लाखों मनुष्य मूख के मारे जैनधर्मका परित्याग कर क्रिश्चियन होते जा रहे हैं । हजारों मनुष्य आर्य समाज हो रहे हैं । ऐसी दशामे हमारे समुदायमे गरीबोंके उद्धार का साधन नहीं । गरीबोंकी फर्याद का सुननेपाला कोई नहीं । उनको पेटमरके खानेको अन्न नहीं । पहननेको वन नहा, रहने को मकान नहीं । एक लाख जितनी पारसी कोम अपना कैसा उपकार कर रही है। मुसलमान लोग किस तरह आपसमे मिल कर काम कर रहे हैं १ संसारमे किस वस्तु की कदर है ? इन बातोका परामर्श बहातक नहीं किया जाता वहातक समाजका दरिद्र दूर होना असंभव है । शरीरका जो अंग बिगडा होता है उसीका सुधारा करना उचित है। बिगडते सडने अंगका सुधारा हो जावेतो सारा शरीर बच सकता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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