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यह ही है कि गृहस्थ के पास लक्ष्मी ऐसी वस्तु है कि इससे वह बडा लाभ उठा सकता है ।
( १ ) वस्तुपाल तेजपाल को आज समाज क्यों याद करता है ? उनकी जीवनचर्याका वर्णन करते हुए पूर्व मुनियोंने लिखा है किजैनागार सहस्रपंचकमतिस्फारं सपादाधिकम्,
लक्षं श्रीजिनमूर्तयस्तु विहिताः प्रोत्तुंगमाहेश्वराः । प्रासादाः पृथिवीतले ध्वजयुताः सार्धं सहस्रद्वयं, प्राकाराः परिकल्पिता निजधनैर्द्वात्रिंशदत्र ध्रुवम् ॥ १ ॥
वस्तुपाल तेजपालने सवापांच हजार जिन चैत्य बनवाये, एक लाख जिन प्रतिमाएँ बनवाई, ढाई हजार शिवालय करवाये, और ३२ दुर्भेद्य कोट बनवाये |
इसके अलावा ५०० दान शालाये उनकी तर्फसे हमेशह चलती थी । ६४ बावडिये उन्होने ऐसी विशाल तयार कराई थी कि जहां का शीतल स्वादु जल हमेशां हजारों मनुष्यों के तापको दूर करता था | पौषध शालायें, मठ, मंदिर, हजारों बनवाये कि जिनमें तापस लोग सुखसे निवास करते थे | ज्यादा गौर इस बात पर करने का है कि वह वर्ष में ३ दफा स्ववमीं वछल किया करते थे, जिन में लाखों क्रोढो जैन धर्मियों के दुःख दरिद्र दूर किये जाते थे |
पांच सौ पाठ शालाएं, फक्त पाठशालाही नहीं परंतु उनको शास्त्र कारोने विद्यापीठ के नामते अंकित किया है; विद्यापीठ एक मुख्य विद्यालय का नाम है कि जिसके सैंकडो नहीं बल्कि हजारों शाखा एं है ।
( २ ) दौलताबाद के रहनेवाले " जगसिंह " शाहुकार को अपने साधर्मी लोगों पर बडा प्रेम था । वह खुद्द क्रोड पति धनाव्य था । उसने
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