Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 102
________________ आवक के पांच नियमोंका वर्णन हो चुका है। उसके उत्तरभूत ३ मनुव्रत, और ४ शिक्षाव्रत मिलानेसे १२ व्रत होते हैं, जो श्रावक धर्मका सर्वस्व है । इन बारां व्रतोका सविस्तर स्वरूप उपदेश प्रासाद, जैनतत्वादर्श, गुणस्थानकमारोह हिन्दो, श्रावक-कल्पद्रुम, आदि ग्रंथोसे जाना जा सकता है । अब यहां एक बात और भी ध्यानमें रखने जैसी है कि-सुपात्र पोषणका संसारमें बडा प्रभाव वर्णित है। साधु साध्वीको उत्तम पात्र गिना है तो श्रावकको मी मध्यम पात्र तो गिना ही है। ॥ श्रावको २१ गुण ॥ १ गंभीर होवे, परंतु क्षुद्र न होवे । २ सर्व अंग संपूर्ण होवे । ३ शान्त प्रकृतिवाला होवे । ४ लोकप्रिय होवे । ५ सरलपरिणामी होवे । क्लेशी न होवे । ६ इसलोक पर लोकके भयसे डरनेवाला होवे | ७ अशठ होवे, परको ठगनेवाला न होवे । ८ दाक्षिण्यवाला होवे, परकी प्रार्थनाका भंग न करे । ९ लजावंत होवे, निर्लज्ज न होवे । १० दयालु होवे दीन दुखीपर दया करे । ११ मध्यस्थ भाववाला होय, पक्षपाती न होय | • २ गुणी जीवपर राग करनेवाला होय । १३ सत्यधर्म कथाका कहनेवाला होय । १४ सुशील-धी परिवारवाला हो । १५ दीर्घदशी लंबा विचार करनेवाला होवे | १६ पक्षपातरहित होवे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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