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१७ वृद्धपुरुषोंकी सेवा करनेवाला होवे । १८ गुणी जीवका विनय करे, अविनीत न होवे । १९ किये हुए उपकारको याद रखे, भूला न देवे । २० निलो(पणे, इच्छारहित, परोपकार करे । २१ लब्धलक्ष्य व्यवहार कुशल होव ।।
एक बात और यहां विचारने लायक है कि-साधु महापुरुष तो अपने मन वचन काया से संसारका उपकार करते हैं, परंतु संसारी जीव आरंभ परिग्रह में आसक्त है। इसलिये उससे वह कार्य बनना अशक्य है जो साधु कर सकता है । बाकी संसारी जीवसे मी अपने समानधर्मीका उपकार तो बन सकता है । संसारमें प्रसिद्ध है कि
सरवर तरवर संतजन, चौथा वरसे मेह ।
परमारथके कारणे, चारो धरे सनेह ॥ १ ।। सरोवर जलाशय, जगत का कितना उपकार करते हैं, वह संसार जानता ही है | तरवर-वृक्ष, यह भी प्रत्यक्ष रूपसे जगत के उपकारी हैं। नर्मदा नदी के किनारे पर-" कबीरवड " नामक एक वड है जो बडा विशाल, सघन छायाशाली है । सुना गया है कि वहां वर्ष वर्ष के बाद एकमेला होता है उसमे सिर्फ उस वडके आश्रय (२०००) छ हजार मनुष्य बड़े आरामसे ठहर सकते हैं । बुद्धिवानोंको विचारनेका विषय है कि-जब एक वृक्ष जिसको संसारमे जड स्थिर स्थावर एकेन्द्री जैसे शब्दोंसे बुलाया जाता है वह छ–छ हजार मनुष्योको साता पहुंचा सकता है तो वह मनुष्य कैसा जो अपने आश्रित एक दो मनुष्योंको भी सुख नदे ! ।
संतजन-साधुपुरुष-और मेघ-वरसाद यह विश्वके आधारही हैं इस बात मे हेतु दृष्टान्त देना सूर्यको दीपक दिखाना है । इससे हमारा कथन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com