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को कहते हैं " गौतम आज तुझे तेरा पूर्व परिचित संबंधी मिलेगा; गौतमने पूछा प्रभु ! वह कौन ? भगवान् कहते हैं 'स्कंदक तापस प्रश्नार्थ पूछनेको आ रहा है, अभी थोडी देरमे यहां आ पहुंचेगा ?"
गौतम स्वामी प्रभुसे पूछकर उसका सत्कार करने के लिये सामने जाते हैं । स्कंदक को बडे प्रेमसे मिलते हैं, आदरपूर्वक उसको प्रभुके पास लाते हैं; स्कंदक प्रभुके पास आकर अपनी शंकाओंको पूछता है | वहां साफ लिखा है कि “ स्कंदक को पास आए जानकर गौतम स्वामी फौरन अपने आसन को छोडकर खडे हुए, स्कंदक के सामने गए, और बडे आनंदसे उसका स्वागत करते है "
[ भगवती मूत्र शतक दूसरा, उद्देशा पहला.] चार ज्ञानके धारक १४००० साधुओं के स्वामी गौतम गणधर एक तापस को आता देख उसके सामने जावे, उसका आदर सत्कार करें, स्नेहिले शब्दोमे उसको स्वागत पूछे यह शब्द क्या कहते हैं ? । इस प्रकरणसें यह एक उत्तम शिक्षा मिलती है कि “ मनुष्यमात्रसे भ्रातृभावरखो उनको ज्यों बने त्यों धर्मके अभिमुख करो परंतु पराङमुख न करो, " तूतू " करने से पशुजाति कुत्ता भी पूंछडी हिलाता हिलाता आके पा
ओमें गिरता है परंतु “ दुरे दुरे" करने से दूर चला जाता है, तो मनुष्य अपमानको कैसे सहन कर सकता है ? इस लिये जीव मात्रसे उस में भी विशेष कर समानधोंसे सहानुभूति ही रखना चाहिये ।
श्रावक-श्राविका जैन संप्रदायके अनेक शास्त्रों में " श्रावक " शद्वकी यह ही व्याख्याकी है कि-जो जीवादि नव तत्वोंका, जामनेवाला हो न्यायापार्जित धनको सात क्षेत्रोंमे खर्चनेवाला हो, कर्मदलिकों को आत्मासे जुदा करनेवाला हो, उसको 'श्रावक ' कहते हैं । इसी ग्रंथके किसी एक प्रकरण में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com