Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 100
________________ ९१ याद दिलाना उचित समझा जाता है कि वह शासन प्रेमी शासनालंकार आनंद कामदेव के पद पर बैठे हुए श्रेणिक, संप्रति, कुमारपाल के स्थानापन्न सदा शासन रक्षक महानुभाव श्रावको को उचित है, उनका फरज है कि बढ़ते हुए कुसंपको — फैलते हुए आपा पंथको रोकनेका प्रयत्न करें । सुना जाता है कि " श्रीधर्मघोष सूरि " जीके समयमे १८. श्रावकों को अधिकार था, कि वीर शासन के साधु साध्वी श्रावक श्राविका जहां हो वहां सब जगह उन (१८ ) श्रावको की सत्ता चले, जिस किसी का जो कोई धर्मवाद होय उसकी फिर्याद उनके पास आवे, उनका इन्साफ वह करें | उनके दिये इन्साफ को― उनके किये फैसले को कोई अन्यथा न कर सके । है शासन पति ! हे हितवत्सल ! हे करुणानिधि ! वीर प्रभो ! जो शान्तिका साम्राज्य आपने फैलाया था वह आज नामशेष - कथाशेषही रहगया है उसे फिरसे उज्जीवित करो। आप श्रीजीके भक्तोंके हृदय मंदिरों में से जो शमसुहृद् रूठा चला जा रहा है उसको फिरसे पीछे लौटाकर आ श्रितों को उपकृत करो । दीनोद्धार धुरंधर ! आपके लगाए नंदनवनको उज्जडते देखके आपके ठहराये रक्षकरूप शासन देव क्यों उपेक्षा कर रहे हैं ? । हमे बडे हर्ष के साथ कहना पडता है कि प्रभुका मार्ग तो विनय विवेक से संपन्न है, उसमे तो गुणी के गुणकी पहचान है, गुणवानका कदर है | नीचे के एक दृष्टान्त से आप इस विषयको खूब तौरपर समझ सकेंगे । सावत्थी नगरी के नजदीक के किसी स्थानका रहनेवाला 'स्कंदक" नामा तापस मनकी शंकाओं का समाधान करने के लिये श्रमण मगवान् महावीर के पास आया, प्रभु श्री महावीरदेव अपने शिष्य गौतम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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