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किंचित् विवरण-हिंसा ( १ ) झूट (२) चोरी ( ३ ) अब्रह्म(४) परिग्रह ( ५ ) यह पांच आश्रव कहे जाते हैं।
स्पर्शन ( १ ) रसन ( २ ) घाण (३) चक्षु ( ४ ) और श्रोत्र (५ ) ये पांच इंद्रिये कहाँ जाती हैं । इनके विषयोंसे बचना यह मी संयम है।
क्रोध ( १ ) मान (२) माया ( ३ ) लोम ( ४ ) इस चौकडीको कषाय चतुष्क कहते हैं । इन चार ही कषायोंका त्याग करना यह भी संयम है । मनसे, वचनसे, कायावे, स्वपरका बुरा चिंतन करना उसको दंड कहते हैं । इन तीन ही दंडोंका त्याग सो भी संयम है। पांच आश्रवोंका त्याम (५) पांच इंद्रियोंका निग्रह ( १० ) चार कषायोंका त्याग (१४) तीन दंडकी विरति रूप ( १७ ) जो धर्म साधुका है, वह ही साध्वीका है। साधु साध्वी की भक्ति ( १ ) उनका बहुमान ( २ ) उनकी श्लाघा(३) उनके उड्डाहका गोपन (४) यह चार प्रकारका विनय कहा जाता है ।
विशुद्ध हृदयसे की हुई मुनिसेवासे धनसार्थवाहके मवमे और जीवानन्दके भवमें श्री ऋषभदेव स्वामीने और नयसारके भवमे की हुई सेवासे श्री महावीर स्वामीके जीवने नयसार के भवमें जो तीर्थकर पदरूप कल्पवृक्षका बीज उपार्जन किया था, उसमें कारण मुनि सेवाही था । __ ऐसे मुनिमहात्माओको भोजन, वस्त्र, स्थान, काष्ठासन, औषभ. भेषज पुस्तक, वंदना, नमस्कार आदि देनेसे दिलानेसे जीव अनंत पुन्य प्राप्त करता है।
बाहु और सुबाहुके सव मे मुनियों की सेवा करके भरत और बाहुबलीके मवमें जो उत्तम फल श्री ऋषमदेव स्वामीके पुत्रोको प्राप्त हुआ है वह प्रायः समस्त बैन जातिसे परिचित है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com