Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 97
________________ ८८ छोड कर वहां भी आने को तयार हुं । और यदि भगवान् श्री संघ साधुओको यहां भेजे तो मै साधुओंको वाचना भी दूं. और मेरा आरंभ किया हुआ कार्य जो कि अब समाप्त होने आया है उसको भी पार पहुंचाऊं । इस मेरी प्रार्थना पर ध्यान देके पूज्य श्रीसंघ जैसा आदेश करेगा मै करनेको हरतरहसे तयार हूं । सोचना चाहिये कि चौद पूर्व धर भी श्रीसंघका कितना मान रखते हैं । इसके अलावा विष्णु कुमार मुनिको जब मेरु चूलापर समाचार मिला कि तुमको श्रीसंघ बुलाता है तो मर चौमासे में अपने ध्यान कार्य को छोड कर भरत क्षेत्र मे आये ! संघ यह समुदाय का वाचक शब्द है, इस जैन पारिभाषिक शब्द से-साधु (१) साध्वी (२) श्रावक (३) श्राविका (४) रूप चातुर वणं श्रीसंघका ग्रहण होता है । ___साधु साध्वी- साधु ' यह शब्द ही मनोरंजक है, अमरसिंहने जहां अच्छे शुभ सूचक शब्दों का संग्रह किया है वहां लिखा है " सुन्दरं-चिरं-चारु-सुषमं साधु-शोभनम् " ___ शब्दशास्त्र-प्रणेताओने साघु शब्द की व्याख्या करते हुए लिखा है कि " साधयति स्वपरकार्याणि इति साधु: ! " संसार व्यवहारमें भी इज्जत आबस्के साथ बणज करनेवालेको “साहुकार"कहते हैं । यह शब्द मागधी माषाका है और संस्कृतसे बना हुआ है | मूल संस्कृत शब्द है “साघुकार" अच्छे कामोंका करनेवाला. जब कि साघु शब्द ही उत्तम है तो उसका अर्थ क्यों कनिष्ठ हो सकता है ? जिनप्रवचनमे साधु को संयमी कहकर बुलाया है । संयमीका अर्थ होता है संयमके धारक-संयमवान्, वह संयम १७ प्रकारका होता है । जैसे कि पांच आश्रवोंका त्याग, पांच इन्द्रियोंका निग्रह, चार कषायोंका त्याग, तीन दंडका विरति, इन (१७) वस्तु ऑको संयम कहते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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