Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 95
________________ ८ वध कराया, और उनके गुरुओंकों भी मरवा डाला ऐसी दशामे वह उनके पुस्तकोंको जिन पर उस धर्मका आधार था कैसे छोड सकता वा | विन्सेंट ए. एम. ए. का भारतका प्राचीन इतिहास ॥ ] कुमारपालके बाद बहुत ग्रंथों का संग्रह वस्तुपाल तेजपालने कराया था. सो उसका नाश अलाउद्दीनके अत्याचारोंसे हो गया । परमश्रद्धालु जैन लोगोंने जो बचा लिये सो आज भी पाटण, खंभात, लींबडी, जयमलमेर, अमदाबाद आदि शहरों मे हयात है । [ सन १९१६ जनवरीकी सरस्वतीमें 'पाटणके जैन पुस्तकभंडार' इस नामके लेखसे, और अन्यान्य प्रबंधोंसे मालुम होता है कि कुमारपालने २१ बडे बडे ज्ञानभंडार करवाये थे, कुमारपालके किये कराये सर्व शुभकार्योंके ज्ञान के लिये मेरा लिखा " हिन्दी कुमारपाल चरित " देखिये | ] संघभक्ति. लोकेभ्यो नृपतिस्ततोपि हि वरश्चक्री ततो वासवः, सर्वेभ्योऽपि जिनेश्वरः समधिको विश्वत्रयीनायकः । सोऽपि ज्ञानमहोदधिः प्रतिदिनं संबं नमस्यत्यहो, वैरस्वामिवदुन्नतिं नयति तं यः सः प्रशस्यः क्षितौ ॥ १ ।। मर्थ—साधारण तौर पर देखा जाय तो चारही वर्णकी प्रजासे राजा श्रेष्ठ गिना जाता है. राजासे भी सार्वभौम राजा ( चक्रवती ) बडा है. क्योंकि ( ३२ ) हजार मंडलीक राजा उसकी सत्तामें है । राजा एक देशका स्वामी है, और चक्रवर्ति नरेश ( ३२ ) हजार देशोंका मालिक है। चक्रवर्तिसे इन्द्रमहाराज बडे है इस बातमे किसी प्रमाणकी आवश्यकता नहीं यह बात सर्व संप्रदाय प्रसिद्ध है ! ___ और इन सबसे देवाधिदेव तीर्थकर देव श्रेष्ठ है । तो भी आश्चर्यकी. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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