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सम्यक्त्व 'निश्वय सम्यक्त्व' और सरग सम्यक्त्व 'व्यवहार सम्यक्त्व ।' ___ अथवा 'द्रव्यसम्यक्त्व' और 'मावसम्यक्त्व' की अपेक्षा सम्यक्त्व दो प्रकार है । जिनश्वर देवका कहा वचन ही तत्त्व है ऐसी श्राद्धा तो है परंतु परमार्थ नहीं जानता है, एमे प्राणीके सम्यक्त्वको 'द्रव्यसम्यक्त्व' कहते हैं । और परमार्थको जाननेवालेके सम्यक्त्वको 'भावसम्यक्त्व' कहते हैं । अथवा शायोपशामिक सम्यक व पौगालिक होनेसे द्रव्यसम्यक्त्व है
और क्षायिक तथा औपशमिक सम्यक्त्व आत्मपरिणाम होनेसे 'भावसम्यक्त्व' है।
तीन प्रकार ।
१ कारक, २ रोचक, और ३ दीपक, ऐसे तीन
प्रकार सम्यक्त्वके होते हैं। देववंदन, गुरु वंदन, सम्यक्त्व
J सामायिक प्रतिक्रमण आदि जिनोक्त क्रियाओंके करनेसे जो सम्यक्त्व होवे उसको ‘कारक साम्यक्त्व' कहते हैं । इन्हीम रुचि होनेसे रोचक सम्यक्त्व' कहा जाता है । स्वयं मिथ्या दृष्टि होने पर भी दूसरोंको उपदेश आदि द्वारा दीपकवत् प्रकाश करे अर्थात् दूसरे जीवोंको सम्यक्त्वकी प्राप्ति करावे वह 'दीपक सम्यक्त्व' है ।
) पूर्वोक्त क्षायोपशमिकादि तीनों सम्यक्त्वके साथ सास्वादचार प्रकरका
नको मिलानेसे सम्यक्त्व चार प्रकार का होता है । औपसम्यक्त्व.
• शमिक सम्यक्त्वसे च्युत होकर मिथ्यात्वके सन्मुख हुआ जीव जबतक मिथ्यात्वको नहीं प्राप्त करता तबतक के उसके परिणाम. विशेषको सास्वादन सम्यक्त्व कहते हैं। ____ ) पूर्वोक्त चारोके साथ वेदक को मिलानेसे पांच प्रका
रका सम्यक्त्व कहा जाता है । क्षायापशामक सम्यम्याप | क्त्वमें वर्तमान जीव जब प्रायः सातों प्रकृतियोंको क्षय करके सम्यक्त्व मोहनीय के अंतिम पुद्गलके रसका अनुभव करता
कारका
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