Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 90
________________ ८१ है उस समय के उस के परिणाम को वेदक सम्यक्त्व कहते हैं । वेदक सम्यक्त्वके बाद उसे क्षायिक सम्यक्त्व ही प्राप्त होता है | वेदक सम्यक्त्वका क्षायोपशमिक सम्यक्त्वमें अंतर्भाव होता है ।। उत्तराध्ययन सूत्रके २८ वें अध्ययनमें-१ निसर्ग रुचि, २ उपदेश रुचि, ३ आज्ञारुचि, ४ सूत्ररुचि, ५ बीजरुचि, ६ अभिगमरुचि, ७ विस्ताररुचि, ८ कियारुचि, ९ संक्षेपरुचि और १० धर्मरुचि के नामसे सम्यक्त्वके दश भेद भी बताये है। प्राप्ति करावे उसको दीपकसम्यक्त्व क जो दूसरोंको सम्यक्त्व हते *. यह दीपक सम्यक्त्व अभव्य जीव साधुपनेमें होता है । उसवक्त उसमें माना जाता है । अथवा १ क्षायोपशमिक, २ औपशमिक और ३ क्षाथिक की अपेक्षा तीन प्रकारका सम्यक्त्व माना जाता है । ___ अनंतानुबंधी क्रोध, मान, माया और लोभ, तथा सम्यक्त्व मोहनीय, मिश्रमोहनीय और मिथ्यात्व मोहनीय इन सातो कर्म प्रकृतिक क्षयोपशमसे जीवको जो तत्त्वरुचि उत्पन्न होवे उसको क्षायोपशमिक सम्यस्त्व कहते हैं । इन्ही सातोंके उपशम होनेसे आत्मामें जो परिणाम होता है उसे औपशमिक सम्यक्त्व कहते हैं । इन्ही सातोंके क्षय होनेसे आत्मामें जो परिणाम विशेष होता है उसे क्षायिक सम्यक्त्व कहते हैं । ॥ज्ञानभक्ति । पठ पठति यतस्वाऽन्नादिना लेखय स्वैः, स्मर वितर च साधौ ज्ञानमेतद्धि तत्त्वम् । श्रुतलवमपि पुत्रे पश्य शय्यंभवोऽदा ज्जगति हि न सुधायाः पानतः पेयमन्यत् ।। १ ।। ( अर्थ ) हे मव्यात्माओं ! ज्ञानका अभ्यास करो | और पढने पढाने वालोंको अन्नादिसे सहायता दो । न्यायोपार्जित द्रव्यसे ज्ञानके पुस्तक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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