Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 91
________________ लिखाओ, याद करो; साधु; साध्वी; श्रावक,-श्राविका; को ज्ञान दान दो। ___ यह ही तत्त्व है। देखो शय्यमव सूरिजीने अपने पुत्रको स्वल्पमात्र मी ज्ञान देकर निस्तारित किया ! संसारमें अमृतसे बढकर और कोई अधिक वस्तु है ? । १ ।। [वि. वि.] -एकठा किया हुआ धन साथ जानेवाला नहीं है । उसके पैदा करनेमें, रक्षण करने में, खर्चने में, अनेक कष्ट सहन पडते हैं। धनके नष्ट होजाने में जो आर्तध्यान और रौद्रध्यान होता है उससे जीव दुर्गतिमें चला जाता है। ____ ऐसी हुशामें मनुष्यको चाहिये कि अनेकानेक कष्टोसे कमाए हुए पैसेको शुभमार्गमे व्यय करे । व्यय करनेके मार्गों से सातमार्ग मुख्य हैंजिनबिम्ब १ जिन-चैत्य २ ज्ञानोद्धार ३ साधु ४ साध्वी ५ श्रावक ६ श्राविकाप जिनचैत्य--जिनबिम्बका वर्णन पहलेकर दिया गया है । ज्ञानोद्धारके संबंधमें जानना चाहिये कि-लिखना लिखाना रक्षण, पालन करना अनेकानेक देशोंमें फैलाना; लाईब्रेरी करनी; शिक्षाका प्रचार करना। साधु साध्वी श्रावक श्राविका-और भाविक मार्गानुसारी जनोंको ज्ञानके तमाम साधन देने, दिलाने; शासन की शोभाके लिये दार्शनिक ग्रंथोंका प्रचार करना । उपदेशक तयार करके अन्यान्य देशो में उन्हें भेजकर धर्मका फैलाव करना, यह सब ज्ञानभाक्त कही जाती है । सर्व प्रयत्नसे सर्वज्ञाभषित ज्ञानका सर्वत्र प्रसार करके उसको सर्वोत्तम स्थान दिलाना यह उत्तमोत्तम ज्ञानसेवा-ज्ञान महिमा-ज्ञान-पूजा कही जानी है। विक्रम की बारहवीं स सोलहवीं सदीतक साधुओं में पठन पाठन का प्रचार अल्प हो गया था, परंतु उसवक्त भी आचार्योने कायदा कायम कर रखा था कि-साधु प्रतिदिन १०० श्लोक लिखे तो ही उसको विगय और शाक देना अन्यथा नहीं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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