Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

View full book text
Previous | Next

Page 87
________________ ७८ [६ प्रकारकी यातना] अन्य तीर्थ के साधु को उसके माने कंचनकामनी शस्त्रादिक धारक देवके साथ ६ प्रकारका व्यवहार मोक्षके लिये नहीं करना । (४४) वंदना-हाथ जोडने । (४५) नमस्कार-शिर नमाना (४६) दान-अन्नादिका देना। (४७) अनुप्रदान-वारंवार देना | (४८) आलाप-बुलाना | ( ४९ ) संलाप-पुनः पुनः बुलाना । [ ६ आगार] (५०) राजाका आगार | (५१) समुदायका आगार | (५२) बलवानका आगार । ( ५३ ) देवताका आगार | (५४) गुरुनिग्रह । (५५) वृत्तिकान्तार | [ ६ प्रकारकी भावना ] (५६) समकितको चारित्र मूल समझना | (५७) समकितको चारित्ररूप प्रासादका द्वार मानना | (५८) समकितको चरित्रनिधान रखनेका खजाना समझना चाहिये। (५९) समकितको धर्मप्रासादकी नीव समझना चाहिये । (६०) समकित आधार है और चारित्र आधेय है । (६१) समाकत चारित्र रसको रखनेका पात्र है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108