Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society
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(२३) विचिकित्सादोषका वर्जन । (२४) परतीर्थक (धर्मविरोधी ) की प्रसंसा न करना । ( २५ ) परतीर्थिक का परिचय न करना ।
[८ प्रभावक ] ( २६ ) समयके अनुसार शास्त्रका पाठी । (२७ ) धर्मकथा कहने में प्रवीण । (२८) वाद विवादमें जयपताका लेनेवाला । (२९) निमित्त ( ज्योतिःशास्त्र ) का पारंगत। ( ३० ) उत्कृष्ट तपस्याका करनेवाला । ( ३१ ) रोहिणी प्रमुख विद्या जिसके सिद्ध हो । (३२) अंजनचूर्णादिके प्रयोगको जाननेवाला । ( ३३ ) कविता के भेदोका जाननेवाला शीवकवि ।
[पांच भूषण ] ( ३४ ) क्रियाकोशल्य-धर्मकार्यके करनेमें चतुराई । ( ३५ ) तीर्थसेवा-संविग्नपक्षि मनुष्योका सहवास । ( ३६ ) भक्ति-तीर्थंकरदेव और साघुवर्गका आदर | (३७) दृढता-समकिती करनामें स्थिरचित्त । ( ३८ ) प्रमावना-जिन शासनकी शोभाका बढाना ।
[पांच लक्षण ] ( ३९ ) अपराधी पर भी समभाव रखना । ( ४० ) मोक्षकी सद अभिलाषा रखनी । (४१) संसारसे उदास रहना । (४२) दुखीको देख मनम दया लानी ।
( ४३ ) वीतरागके वचनों पर अचल श्रद्धा रखनी ।' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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