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चती । क्योंकि जब तक वह गृहस्थी लेकर बैठा है तब तक समाज, देश और धर्म का यथाशक्ति रक्षण करना यह उसका परम कर्तव्य है । यदि किसी भ्रांतिवश वह अपने कर्तव्य से म्रट होता है तो उसका गतिक अधःपात होता है, और नैतिक अधःपात यह एक सूक्ष्म हिंसा है। क्योंकि इससे आत्मा की उच्चवृत्ति का हनन होता है । अहिंसा धर्म के उपासक के लिये निजी स्वार्थ-निजी लोभ के निमित्त स्थूल हिंसा का त्याग पूर्ण आवश्यक है | जो मनुष्य अपनी विषय तृष्णा की
त के लिये स्थूल प्राणियों को क्लेश पहुंचाता है, वह कभी किसी प्रकार अहिंसाधर्मी नहीं कहलाता । अहिंसक गृहस्थ के लिये यदि हिंसा कर्तव्य है तो वह केवल परार्थक है । इस सिद्धान्त से विचारक समझ सकते हैं कि, अहिंसावत का पालन करता हुआ, मी गृहस्थ अपने समाज और देश का रक्षण करने के लिये युद् कर सकता हैरडाई लड सकता है । इस विषय की सत्यता के लिये हम यहां पर ऐतिहासिक प्रमाण भी दे देते हैं
गुजरात के अन्तिम चौलुक्य नृपति दूसरे भीम ( जिसको भोला भीम भी कहते हैं ) के समय में, एक दफह उसकी राजधानी अणहि
पुर पर मुसलमानों का हमला हुआ । राजा उस समय राजधानी में हाजर न था केवल राणी मौजूद थी । मुसलमानो के हमले से शहर का संरक्षण कैसे करना इसकी सब अधिकारियों को बडी चिन्ता हुई। दंडनायक ( सेनाधिपति ) के पद पर उस समय एक आभु नामक मीमालिक वणिक श्रावक था । वह अपने अधिकार पर नया ही आया हुआ था, और साथ में वह बडा धर्माचरणी पुरुष था । इसलिये उसके युद्धविषयक सामर्थ्य के बारे में किसीको निश्चित विश्वास नहीं था । इधर एक तो राजा स्वयं अनुपस्थित था, दूसग राज्यमें कोई वैसा अन्य पराकमी पुरष न था, और तीसरा, न राज्यमें यथेष्ट सैन्य ही था । इस Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com