Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 60
________________ ५३ लिये राणी को बढी चिन्ता हुई । उसने किसी विश्वस्त और योग्य मनुष्य के पाससे दंडनायक आमु की क्षमता का कुछ हाल जान कर स्वयं उसे अपने पास बुलाया और नगर पर आई हुई, आपत्ति के सम्बन्ध में क्या उपाय किया इसकी सलाह पूछी । तत्र दंडनायकने कहा कि यदि महाराणी का मुझ पर विश्वास हो और युद्ध संबंधी पूरी सत्ता मुझे सौप दी जाय तो मुझे श्रद्धा है कि मैं अपने देश को शत्रु के हाथ से बालबाल बचा लूंगा । यमू के इस उत्साहजनक कथन को सुनकर राणी खुश हुई और युद्ध संबंधी संपूर्ण सत्ता उसको देकर युद्धकी घोषणा कर दी | दंडनायक आमु ने उसी क्षण सैनिक संवटन कर लढाई के मैदान में डेरा किया | दूसरे दिन प्रातः काल से युद्ध शुरू होने वाला था । पहले दिन अपनी सेना का जमाव करते करते उसे संध्या हो गई । वह व्रतधारी श्रावक था इसलिये प्रतिदिन उभय काल प्रतिक्रमण करने का उसको नियम था । संध्या के पढने पर प्रतिक्रमण का समय हुआ देख उसने कहीं एकांत में जाकर वैसा करनेका विचार किया । परंतु उसी क्षण मलूम हुआ कि उस समय उसका वहांसे अन्यत्र जाना इच्छि कार्य में विघ्नकर था, इसलिये उसने वहीं हाथी के होदे पर बैठे ही बैठे एकाग्रता पूर्वक प्रतिक्रमण करना शुरू कर दिया । जब वह प्रतिक्रमण में खाने वाले -- “ जेमे जीवा विराहिया - रगिंदिया-बेइंदिया " इत्यादि पाठ का उच्चारण कर रहा था. तब किसी सैनिक ने उसे सुन कर किसी अन्य अफसर से कहा कि - देखिए बनाव हमारे सेवादा तो इस लढाई के मैदान में भी — जहां पर शस्त्रास्त्र की झनाझन हो रही है. मारो मारो की पुकारे बुलाई जा रही हैं वहाँ — एगिंदिया बेइंदिय कर रहे हैं। नरम नरम सीरा खाने वाले ये श्रावक साहब क्या बड़ादुरी बतायेंगे। धीरे धीरे यह बात ठेठ रानी के कान तक पहुंची । वह सुनकर बहुत संदिग्ध हुई परन्तु उस समय अन्य कोई विचार करने . Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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