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देशमें हंगरीप्रांतके " बूदापेस्त " शहरमें श्रीमन्महावीरस्वामीकी प्रतिमा निकली है [ इसके विशेषवर्णनके लिये मेरा लिखी " गिरिनार गल्ल" और 'संप्रतिराजा" नामक पुस्तकोंका देखना जरूरी है ]
मूर्तिपूजकों की संख्या. मूर्तिनिषेधकोंकी संख्या. बौद्ध ५८०००००००
याहुदी १२२००००० केथोलिक १००००००० प्रोटेस्टंट १७१६००००० ग्रीक १०००००००
पारसी १००००० हिंदु २१६७०००००
मुसलमान २२१८००००० जैन १००००००
ढूंढकजैन ३००००० एनिमिष्ट ! ५०२००००० ब्रह्मपार्थनासमाज ५५०० सिख लोग भी गुरुओंकी मूर्तिकी पूजा करते हैं।
कुछ वर्ष पहिले एक महानुभावने सरस्वती " भारतकी मूर्ति कारीगरी " इस विषय पर लेख लिखकर बहुतसी नवीन जाननेलायक वातो. का दिग्दर्शन कराया था | उनके कुछ सरल सरल और उपयोगी का क्योंको यहां उदृत किया जाता है । 'भारतवर्षकी प्राचीन शिल्पकलाकन Eनिष्ट संबंध 'धर्म ' से सर्वदा रहा है । प्राचीन भारतके चित्रकार तथा मूर्तिकार अपनी २ विद्या तथा कलाकौशल्यका उपयोग संसारको साथ रण वस्तुओके संबंध न करते थे । भारतीय चित्रकार तथा मूर्तिकारोळा उद्देश देवताओंके चित्र तथा मूर्तिये बनाना है। प्राचीन मारतवर्षको जितनी मूर्तियां अभी तक मिली है, प्रायः सबकी सब या तो किसी देवता या महापुरुषकी है। या अन्यधर्मसंबंधी घटनाओंके आधार पर बनाई गई हैं । भारतवर्षमें प्राचीन मूर्तिकारीके — इतिहास' का भारंभ बचोक के समयसे हुआ हो, और अन्त मुसलमानोके समयसे हुमा हो, ऐसा संभव तया सिद्ध है।
अर्थात् इंसाकी तीसरी शताब्दीसे लगाकर इसके बाद पापी
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