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आदेशमें चलाया है, अर्थात् जिसने लक्ष्मीको अपनी इच्छानुकूल व्यय किया है, उसीसे यह पृथ्वी रत्नप्रसू कही जाती है ! __ इस उपदेशको सुन कर राजाने साढे तीनकोड सोनामोहरे गलवा कर स्वर्णकी अनेक प्रतिमाये बनवाई और उस विशाल मन्दिर, कि जिसमें वह प्रतिमाये स्थापन की गई थीं, का रंगमंडप बनानेमें २१ लाख सोना मोहरे व्यय की और सवा लाख सौनये खर्च करके उन्होंने मूल मंडप का रिपेर काम कराया। आचार्य महोदयक्रे उपदेशसे राजाने शत्रुजय गिरिनारके मन्दिरोंका जीर्णोद्धार भी कराया(देखो उपदेश तरंगिणी)कलिकालकसर्वज्ञश्रीहेमचन्द्रसूरिजीके उपदेश से जिनधर्म प्राप्त करकेचौलुक्य कुलदीपकमहाराजकुमारपालदेवने तारंगाजी और खंभात प्रमुख स्थानोंभे १००० नवीन जिनमंदिर बनवाये थे। अपने पिता त्रिभुवनपालणके नामसे पाटणामें उन्होने “त्रिभुवनपालविहार" नामक (पुर) बहत्तर देव कुलिका सहित विशाल मंदिर बनावाया था।उस परमाहत ने २४सोनेकी २४रजतकी, चौबीस पीतलकी इत्यादि अनेकानेक जिनप्रतिमा बनवाकर उस महा मन्दिर में स्थापन कीथीं १२५ अंगुलप्रमाग अरिष्ठरत्नकीप्रतिमा श्रीनेमिनाथ स्वामीकी बनवाकर मूलनायक पन स्थापन की थी । इस मन्दिरके बनवाने में ६ कोड अशर्फियाँ सर्चकर पुण्याधिक मूपालने जिन शासनकी और अपने पूज्य पिताकी प्रम्त सेवा बजाई थी। उस मन्दिर में उदयन, आम्रदेव, कुबेरदत, अभयकुमार और बाह्डदेव आदि अठारह मुख्य मुख्य धनपति श्रावक गीतगान नृ य अ दे ठाठ पूर्वक नित्यधर्म क्रिया किया करते थे। इस मंदिर को कुमार पालके उत्तराधिकारी अजयपाल ने नष्ट क दिया था, इस मं. दिर की नीवमें से जो पाषाण की विशाल शिला निकली हैं उन्हें हमने अपनी नजरसे देखा है वे सब " गायकवाड " सरकारके स्वाधीन ह परन् उनशिलात अनेक मंदिर तयार, या रिपेर हो सकते थे ।
उपदेश तरंगीणीमें लिखाहै, कि मम्पतिराजा तीनसंड भरतक्षेत्रका वि. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com