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हुए घनसे आत्मकल्याणके निमित्त जिन मंदिर बनवाया है, उसने संसारमे सारभूत तीर्थंकर पद प्राप्त किया माना जाता है । उसने अपने ज न्मका फल प्राप्त कर लिया, और अपने गोत्रको परम पवित्र करने के साथ जिनशासनको उन्नतिके शिखर पर पहुंचाया ।
विशेष वर्णन |
आचार्य श्री बप्पभ
'अपने रहने बैठने के लिये मकान, माले, आलने, घोंसले, कौवे, चिडिये, शुक, तीतर इत्यादि पक्षि लोग भी बना लेते हैं । मनुष्य तो सर्वोत्कृष्ट शक्ति और ज्ञान संपन्न माना जाता है यदि वह अपने निवासका स्थान बना ले, तो उसमें आश्चर्य ही क्या है ? परन्तु भाग्यवान वही माना जाता है कि जो अपनी शक्तिके अनुसार " जिनचैत्य " निर्माण कराके न्यायोपार्जित लक्ष्मीको सफल करे | ट्टि सूरिजीने गवालियर के आम राजा पर महान उपकार किया था । अतएव राजा पुनः पुनः उनकी भावभक्ति करनेमें तत्पर रहता था, बल्कि बप्पभट्टि सूरिजी की सूरिपद प्रतिष्ठाके समय में भी, भूपति स्वयं उपस्थित हुआ था । और जैनश्रीसंघ में आगेवान बनकर अपने कोष में से एक करोड सोनामोहरा खर्च कर उसने वि. सं. ८११ में आचार्य महाराजका पदमहोत्सव किया था ।
एक समय सूरीजी महाराजने गवालियर नगरकी तर्फ प्रस्थान किया, और वहां जाकर राजाको उपदेश देना आरंभ किया, उपदेश देते समय सुरिजीने यह कहा कि
श्रीरियं पुरुषान् प्रायः कुरुते निजकिंकरान् |
कुर्वते किंकरी तां येतैरसौ रत्नसू रसा ॥ १ ॥
अर्थ – विशेषकर लक्ष्मी ने मनुष्यों को अपना किंकर तो बना ही रखा है, लक्ष्मी के मदसे मोहित होकर मनुष्य अपने कर्तव्यों से परान्मुख तो हो ही रहा है । तथापि जिन पुण्यात्माओंने, उसको अपने
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