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किया करता था । लिखा भी है कि " मवन्तिहि महात्मानो गुर्वाज्ञामंगमीरवः "
सोलहवीं शताब्दीमें रत्नमण्डणगणिने — उपदेशतरंगिणी ' नामक ग्रंथ बनाया है वह अपने सत्तासमयमें लिखते हैं कि वर्तमान समयमें मी सिन्धुदेशके मरोठपुरमें सम्प्रति राजाकी बनवाई ८५ हमार पीतल की प्रतिमायें मौजूद हैं।
तपगच्छनायक श्री धर्मघोषसूरिजी के उपदेशसे पेथडशाह आर उनके लडके झांझण शाहने विक्रम संगत् १३२१ मे " जीरावला" पार्श्वनाथ “ शत्रुजयगिरि " वगैरेहतीर्थोपर ( ८६ )जिनमंदिर बनवा येथे
और उन सर्व मंदिरोंके शिखरो पर सोनेके कलस चढाये थे । इतना ही नहीं बल्कि-" दौलताबाद " " ओंकारपुर " वगैरह नगमे अन्यदर्शनानुयायी लोग धर्मद्वेषके कारण मंदिर नहीं बनाने देते थे, पेथडशाह समझते थे कि इन इन स्थानो मे मंदिरो का होना खास लामका कारण है । इस लिये उन्हों ने खुद वहां जाकर उन गाम नगरोके राजाओके मंत्रिलोगोंके नामसे दानशालाएँ जारी करदी, यथेष्ठ खान पान मिलने से देश देशान्तरके याचक लोग मंत्रिलोगोंका यश गाने लगे । मंत्रियोंने सोचा कि हमने तो किसीको कुछ दिया नहीं । यह सब याचक हमारी कीर्ति गा रहे हैं इसमे कोई खास कारण होना चाहिये। दर्याफ्त करने पर मालूम हुमा कि “ मांडवगढ " का राजमान्य पेन्शाह मंत्री यहां आया हुआ है, उसने अपनी सजनताले हमको यशस्वी बना दिया है । इस लिये हमको भी चाहये कि उस सुयोग्यकी योग्यताके अनुसार उसे इच्छित देकर सन्मानित करना,
और अपने सिरचढ़े हुए ऋणको उतारना । म्ह सोचकर उन्होने पी प्रतिष्ठापूर्वक पेपशाहको बस्ने पास बुलाया । बहुत कुछ मानसन्नाम देकर कहा “ आप जैसे धर्ममूर्ति-पुन्यात्माओंका हमारे यहां आना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com