Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 67
________________ पर भी उसका उनको बन्ध नहीं होता क्योंकि बन्ध में मानसिक माय ही कारणभूत है -कायिक व्यापार नहीं । यही बात भगवद्गीता में भी कही हुई है । यथाः यस्य नाहंकृतो मावो बुद्धियस्य न लिप्यते । हत्वापि स इमाल्लोकान् न हन्ति न निबध्यते ।। अर्थात जिसके हृदय में से ' अहंभाव ' नट हो गया है और जिसकी बुद्धि मलित रहती है वह पुरुष कदाचित् लोकदृष्टि से लोगों कोप्राणियों को मारने वाला दीखने पर भी न वह उनको मारता है, और न उस कर्म से बद्ध होता है। इसके विपरीत जिप्तका मन शुद्ध और संयत नहीं है-जो विषय और कषाय से लिप्त है वह बाह्य स्वरूप से अहिंसक दीखने पर भी तत्व से वह हिंसक ही है। उसके लिये स्पष्ट कहा गया है कि-- अहणतो वि हिंसो दुर्छतणओ मओ अहिमरोब्ध । जिसका मन दुष्ट-भावों से भरा होता है वह किसीको नहीं मारकर मी हिंसक ही है । इस प्रकार जैनधर्म की अहिंसा का संक्षिप्त · स्वरूप है। ___(महावीरसे उघृत) सातक्षेत्र. क्षेत्रषु सप्तस्वपि पुण्यवृद्धये, वद्धन सम्पतिराजबद्धनी । Fiलं केलशास्तिदुटान्, यो त कि योऽ खेलसस्य लालसः॥ १ ॥ अर्थ-धनपात्र मनुष्यको चाहिये, कि संपत्ति नरेश, की तरह पुण्यकी वृद्धिकी इच्छासे अर्थात् धर्मकी पुष्टि के लिये सात क्षेत्रोंमें धन व्यय करे, इस पर यह तर्क हो सकती है कि खेती करने वाला (कृषक) क्या चावल ही बीजता है ? ... नहीं नहीं सर्वही प्रकारके धान्यों को बीजता है। दृष्टान्त के तौर पर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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