Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 72
________________ ६५ च परमात्माकी यह मूर्ति है उसने फलाने फलाने वक्त उस अपने वजूद के जरिये फलाना फलाना उत्तमकार्य करके समाज और देशको ॠणी किय तथा जैसे कि कव्वाली दीक्षा प्रभूकी जोवे जग पुण्यवन्त प्राणी ( अंचली ) जय वामाजीके नंदा कटो जन्म जन्म फन्दा कुलवृद्ध बोले वाणी, जग पुण्यवन्त प्राणी ।। १ ।। चकचूर मोह करियो, दालिद्र दूर हरियो । जिम होये वरसी दानी, जग पुण्यवन्त प्राणी || २ || पहुंचे बहिर नगरिया, वरघोडेसे उतरिया । आश्रम पद उद्यानी, जग पुण्यवन्त प्राणी || ३ || अशोक वृक्ष हेठे, भूषण तजके बैठे । अटम तप मानी, जग पूण्यवन्त प्राणी || ४ || महाव्रत चार उचरे, वदि पोष मास सुचरे । एकादशी सुहानी, जग पुण्यवन्त प्राणी || ५ || परिवार शत तीनो, देवदूष्य इंद्र दीनो । प्रभु होए तूर्य ज्ञानी, जग पुण्यवन्त प्राणी ॥ ६ ॥ नंदीश्वरे सुर जावे, माता पिता घर आवे | काउसग जिन ध्यानी, जग पुण्यवन्त प्राणी ॥ ७ ॥ व्यतम आनंद दाता, पार्श्व प्रभु है त्राता । वल्लम वीर जानी, जग पूण्यवन्त प्राणी ॥ ८ ॥ प्रमुकी पूजा करते हुए सुज्ञ मनुष्यको चाहिये कि वह नीचे लिखी हुई बातों को मन में रखकर परमात्मा की पूजा करे । हे प्रभो इन चरणोंके बलसे आप देशोंदेश गामोगांम घूम कर हमारे जैसे मूले मटकते जीवोको मोक्षका मार्ग बता सके हैं इस लिये मैं आपके चरणों की पूजा करता हूं | इसी तरह नव ही अंगोकी पूजा करते समय जो मावनत लानी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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