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कि जो लोग आजसे २० वर्ष पहले हजारोंकी संख्या में थे वह आज लाखोकी संख्या में आगये और जैन प्रजा करोडोंकी संख्या मेंसे लाखों में आगई । अब यह भी सोचनेका विषय है कि जिस धर्ममें विद्या नहीं, जिसमें ऐक्य नहीं. जिसमें कोई नायक नहीं, जिसका आनेका मार्ग रुक चुका है और जाना हमेशा जारी है उस धर्मकी, उस समाज या - संप्रदायकी बढती चढती कैसे हो सकती है ? बढती की तो बात ही दर किनारे रखो मूर्तिपूजा की ही क्षति होरही है।
शहर सूरतमें व्याख्यान देती हुई विदुषी एनीबेसेन्ट ने कहा था कि" यद्यपि जैनधर्म पवित्र और प्राचीन है तथापि आज कलको उसकी छिन्नभिन्न दशाको देख कर बुद्धिबलसे मालूम देता है कि यह धर्म १०० वर्षसे ज्यादा दुनिया में नहीं टिकेगा " आज हम उस बात का प्रत्यक्ष अनुभव कर रहे हैं। दस वर्ष पहले जो मर्दुमशुमारी हुई थी उस वक्त में और आज की संख्या मे १००००० आदमी की कमी हुई है । ४०००० मनुष्य सिर्फ मुंबई इलाके मेंसे घटे हैं । इस अवस्थामें तो सबसे पहले श्रावक श्राविका रूप क्षेत्रकी सार संभाल करना चाहिये । || जिनबिम्ब ||
“बिम्बम् महल्लघु च कारितमत्र विद्युन्माल्यादिवत् परमत्रेऽपेिशुभाय जैनम् । ध्या तुर्गुरुलघुर पीप्सितदायिमंत्रप्राग्दौस्थाभावि घनविघ्नाभिदे न किं स्यात् || २ | इस लोक में छोटा या बडा एक भी जिन बिम्ब कराया होय, तो वह विद्युन्माली देवताको जैसे कल्याणका करण हुआ वैस सर्व भय्यात्माओंको हो सकता है । प्रसिद्ध बात है कि बडा इष्टफल देनेवाला मंत्रध्यान करनेवाले के दरिद्र को दूर नहीं करता अर्थात् करता है ।
(विशेष विवेचन )
संसारके प्रत्येक ग्राम, नगर या जनपद में देखनेसे साक्षी मिल सकती
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