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किसी नगरमें कोई एक कोटिध्वज शाहुकार रहता था, उसने अपने अंत समयमें गामके चार प्रतिष्ठित पुरुषों को बुलाकर अपनी संपूर्ण संगति देदी और कहा कि तुमको विश्वास पात्र समझ कर आपनी पूंजी देता हूं। तत्पश्चात् मैं अपने अभीष्टको आप लोगोंके समक्ष प्रकाशित करता हूं, कि मेरे सात पुत्र हैं । और उनके पालन पोषण के निमित्त उपर्युक्त पूंबी तुम्हारे अधिकार अर्पण की जाती है, तुमको सर्वथा उचित है कि मेरी सम्पत्तिका अनुचित रीतिसे दुरुपयोग न करें, केवल इस संचित पूंजी को मेरे लिय अंगों के पालन पोषण में ही व्यय करके उनको सदाके लिये हयात और आबाद रख्खे ।
[उपनय घटना ] संसार यह एक तरहका नगर है, वीर परमात्मा शाहुकार है । उन्होंने अपने निर्वाण के समय अपनी ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूप अनंत सम्पत्ति श्रीसंवको सुपुर्द करके कहा कि हमारे बताये हुये अर्थात् हमारे स्थापन [ कायम ] किये हुये जिनविम्ब १ जिनपैत्य २ सम्यग् ज्ञान ३ साधु ४ साध्वी ५ श्रावक ६ प्राविका ७ इन सात क्षेत्ररूप पुत्रोंका तुम सदा पालन, पोषग, रक्षण
और निरीक्षणा करना, इन सात ही क्षेत्रोंका समान दृष्टिसे बचाव करना । इन सात क्षेत्रोंको मेरे निज पुत्र समझ कर समान भावसे पालना, और उत्पात, उपद्रवोंसे रक्षा करते रहना । गुणकारी, उपकारी, सहायक सामग्रीसे इन्हें उपचित करना । आशय यह है कि इनसे किसोको मी न्यूनाविक समझ कर बिलकुल चटाना बढाना नहीं, कितो पर भी भावको न्यूनाधिकता न रखते हुये, सबको मेरे ही शरीरके अंगमा मानना । इससे हमारा यह आशय नहीं कि देव द्रव्य ज्ञान द्रव्य साधु साधी, या श्रावक श्राविका खाजावें !! ऐसा होना तीर्यकर गगवरो की आशा साफ विरुद्ध है । हमारा आशय यह है कि हिन्मुस्थानने आजकर ३१
हमार बिनमंदिर गिने जाते है । हरएक समझदार समझ सकता है किShree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com