Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 55
________________ उन्नतिमें अहिंसा एक प्रधान कारण है। नैतिक उन्नतिके मुकाबले में भौतिक प्रगतिको कोई स्थान नहीं है ओर इसी विचारसे भारत वर्षके पुरातन ऋषि-मुनियोंने अपनी प्रजाको शुद्ध नीतिमान बनने ही का सर्वाधिक सदुपदेश दिया है । युरोपकी प्रजाने नैतिक उन्नतिको गौणकर भौतिक प्रगतिकी ओर जो आंखमींच कर दौड़ना शुरू किया था उसका कटु परिणाम आज सारा संसार भोग रहा है । संसारमें यदि सच्ची शान्ति और वास्तविक स्वतंत्रताके स्थापित होनेकी आवश्यकता है तो मनुष्योंको शुद्ध नीतिमान् बनना चाहिए । ___ शुद्ध नीतिमान् वही बन सकता है जो अहिंसाके तत्त्वको ठीक ठीक समझ कर उसका पालन करता है । आहिंसा, शांति, शक्ति, शुचिता, दया, प्रेम, क्षमा, सहिष्णुता, निर्लोभता इत्यादि सर्व प्रकारके सद्गुणों की जननी है । अहिंसाके आचरणसे मनुष्यके हृदयमें पवित्र भावोंका संचार होता है, वैर विरोधकी भावना नष्ट होती है और सबके साथ बंधुत्वका नाता जुडता है । निस प्रजामें ये भाव खिलते हैं वहाँ ऐक्यका साम्राज्य होता है और एकता ही आज हमारे देशके अभ्युदय मौर स्वातंत्र्यका मूल वीज है । इस लिये अहिंसा यह देशकी अवनतिका कारण नहीं है परंतु उन्नतिका एकमात्र और अमोघ साधन है । 'हिंसा' शब्द हननार्थक 'हिसि ' धातु पर से बना है इस लिए 'हिंसा' का अर्थ होता है, किसी प्राणी को हनना या मारना । भारतीय ऋषि-मुनियों ने हिंसा की स्पष्ट ब्याख्या इस प्रकार की है-'प्राणवियोग प्रयोजन व्यापारः' अथवा 'प्राणि दुःख साधन न्यापारो हिंसाअर्थात् प्राणी के प्राण का वियोग करने के लिये अथवा प्राणी को दुःख देने के लिये जो प्रयत्न किया उसका नाम हिंसा है । इसके विपरीतकिसी भी जीव को दुःख या कष्ट न पहुंचाना आहिंसा है । 'पातंजल' योमसूत्र के भाष्यकार महर्षि व्यासने 'अहिंसा' का लक्षण यह किग Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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