Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 56
________________ है-'सर्वथा सर्वदा सर्वमूतानामनभिद्रोहः-अहिंसा' अर्थात् सब तरह से, सर्व समय में, सभी प्राणियों के साथ अद्रोह भाव से वर्तना-प्रेममाव रखना उसका नाम अहिंसा है । इसी अर्थ को विशेष सष्ट करने के लिये ईश्वरगीता में लिखा है कि___कर्मणा मनसा वाचा सर्वभूतेषु सर्वदा अक्लेशजननं प्रोक्ता अहिंसा परमविभिः । अर्थात्-मन, वचन और कर्म से सर्वदा किसी भी प्राणी को केश नहीं पहुंचाने का नाम महर्षियों ने 'अहिंसा' कहा है । इस प्रकार की अहिंसा के पालन की क्या आवश्यकता है इसके लिये आचार्य हेमचन्द्र ने कहा है कि आत्मवत् सर्वभूतेषु सुखदुःखे प्रियाप्रिये । चिन्तयन्नात्मनोऽनिष्टां हिंसामन्यस्य नाचरेत् ॥ अर्थात्-जैसे अपनी आत्मा को सुख प्रिय लगता है और दुःख अप्रिय लगता है, वैसे ही सब प्राणियों को लगता है | इस लिये अपनी आत्मा के समान अन्य आत्माओं के प्रति भी अनिष्ट ऐसी हिंसा का आचरण कभी नहीं करना चाहिये । यही बात स्वयं श्रमणभगवान् श्री महावीर ने मी इस प्रकार कही है “सम्वे पाणा पिया, सुइसाया, दुहपडिकूला, अम्पिय वहा, पिटबीविणो, जीविउकामा । (तम्हा) णातिवाएज किंचणं । " ___ अर्थात्-सर्व प्राणियों को आयुष्य प्रिय है, सब सुख के अभिलाफी है, दुःस सबको प्रतिकूल है, वध सबको अप्रिय है, जीवित सभी को प्रिय लगता है -सभी जीने की इच्छा रखते हैं । इसलिये किसीको मारना या कष्ट न देना चाहिए । अहिंसा के आचरण की आवश्यकता के लिये इससे बढकर और कोई दलील नहीं है- और कोई दलील-हो ही नहीं सकती। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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