Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 33
________________ २६ " यात्येकतोऽस्तशिखरं पतिरौषधीना___ माविकृतोऽरुणपुरस्सर एकतोऽर्कः । तेजोदयस्य युगपद् व्यसनोदयाभ्यां : लोको नियम्यत इवात्मदशान्तरेषु ॥१॥" प्रिय बन्धुओ ! जो गिरा हुआ है उसकी अवश्य उन्नति होगी, मान लो कलियुग इसी लिये आया है कि सतयुग का मार्ग साफ और निष्कप्टक बनजाय । समय की परिस्थिति। देखो कालकी गति कैसी विचित्र दीख पडती है, जब यहां दिन होता है तो अमेरिका में रात होती है । ठीक इसी प्रकार से जब उन्नति का सितारा भारत वर्षपर चमकता था तो अमेरिका वगैरह का कोई नाम भी नहीं जानता था । शासन नायक वीर प्रमु के निर्वाणके कुछ वर्ष पीछे अशोक राजा का पौत्र सम्प्रति नरेश हुआ कि जिसने अपने अखंडशासन के बलसे अमेरिका प्रभृति देशों में भी " स्याद्वाददर्शन" का प्रचार किया । उन उन देशों में अपने सुशिक्षित उपदेष्टाओं को भेज कर जैन धर्मके उन गूढ तत्वों को समझाया जो उन के लिये अश्रुत पूर्व थे । आज भी उन देशों में से निकलती हुई तीर्थंकर देवों की प्रतिमायें इस सत्य घटना की बराबर सत्यरूप से गवाही दे रही हैं । विद्या और दान इस वक्तव्य का सारांश यही निकला कि - संसार का (संसार वर्तिपदार्थ मात्र का) परिवर्तन स्वभाव है । जिस जनपद का नेता न्यायशील होगा, जहां की जनता अपने हेयोपादेय की समझने वाली होगी, उम्र का अवश्य उदय होगा | प्राचीन समय में लोग विद्याव्यसनी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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