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बहादुरी से ही सिन्धपति पकडा गया था । प्रसिद्ध मंत्री वस्तुपाल तेजपाल ने कई बार गुजरात की तरफ आते हुए यवनों को परास्त कर के पीछे लौटाया था । मेवाड केशरी महाराणा प्रताप जब सब तरह से हारकर मुगल बादशाह से सन्धि करने को तैयार हुवे थे तब उन को सहायता देकर फिरसे उत्साहित करनेवाला भामाशाह पोरवाड जैनधर्मका ही उपासक था | प्रसिद्ध है कि १२ वर्षमक हाथी घोडे सहित २५ हजार फौजी मनुष्यों का पालन हो सके इतनी सहायता देकर भामाशाह सेठने भारत के अस्त होते सूर्यको थाम लिया था । इतना ही नहीं बल्कि अपने राज्यको किसी कारण सर छोडकर चित्तौडमें आये हुए बहादुर शाहको आपत्ति के समय किसी भी शर्तके विना एक लाख रुपया देकर उसे सुखी करनेवाला भाग्यवान् कर्मशाह भी जैन ही था ।
तीर्थकर देवोंका यह ही उपदेश है कि सभीका लाभ चाहो । तुम्हारा खुदका भी भला होगा | मनसे बचनसे और कर्मस जीवमात्र के साथ मैत्री रखो । सदाकाल सत्यभाषी रहो | जिह्वा यह दक्षिणावर्त शंख है, इसमें कीचड मत भरो, अगर हो सके तो कामधेनुका दूध मरो, यह तुमको वांछितफल का देनेवाला होगा ।। १ ।।
जैनधर्मका अहिंसातत्त्व । जैनधर्म के सब ही ' आचार ' और ' विचार ' एक मात्र ‘अहिंसा' के तत्त्व पर रचे गय हैं । यों तो भारत के ब्राह्मण, बौद्ध आदि सभी प्रसिद्ध धर्मों ने अहिंसा को 'परम धर्म ' माना है और सभी ऋषि, मुनि साधु संत इत्यादि उपदेष्टाओं ने , अहिंसा का महत्त्व और उपादेयत्व बतलाया है; तथापि इस तत्त्व को जितना विस्तृत, बितना सूक्ष्म, जितना गहन और जितना आचरणीय जैनधर्म ने बनाया है, उतना अन्य किसी ने नहीं । जैनधर्म के प्रवर्तकों ने अहिंसातत्त्व को
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