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अमर कनों के पात्र जूटे, साफ कर पंडित हुए | सच्चे स्वदेशी मानसे, फिर भी नहीं मंडित हुए ।। दृष्टान्त बनते हैं अधिक, वह इस कहावत के लिये ।
बारह वरस दिल्ली रहे, पर भाडही झोका किये ।। जर्मनी में सैनाविभागवाले लोग और वाणक लोग कबूतरों तथा अन्य पालित चिड़ियों को शिक्षित करने आर कई तरह से अपने काम के योग्य बनाने की चेष्टा कर रह हैं । वे इनके गले में चिट्ठी तथा पत्रों को रूमाल से बान्धकर एक जगह से दूसरी जगह लेजाने की शिक्षा देने हैं । वणिक लोग अपनी शाखाओं में जो किसी नदी के पार हैं नौका मादिकी प्रतीक्षा न कर अति आवश्यक पत्रों को इन्ही पक्षियों के द्वाल भेजा करते हैं । उसी तरहसे सेना विभाग भी युद्धके समय शिक्षित कबूतरों से संवाद भेजने का काम लेता है । समाचार पत्रों में पढ़े लिखे लोगों को यह संवाद मिला होगा कि हाल में जो प्रदर्शनी जर्मनीमें हुई थी उसमें १०, ००० शिक्षित कबूतर लाये गये थे जो निश्चित स्थानो पर सम्वाद पहुंचाते थे । इन कारणों से जमनीमें एक कबूतर का मास्त वर्ष के मनुष्य की अपेक्षा कहीं अधिक मूल्य है ।
जैन धर्ममें गृहस्थाश्रमके पांच नियम । १-निष्कारण निरपराधी जीव को जानकर न मारना । और जिस ने अपना अपराध किया है जहां तक हो सके उसपर भी क्षमा करनी।
२-अव्वल तो सर्वथा झूठ न बोलना, अगर निर्वाह न होसके ते कन्या, गौ, भूमि, इन तीन चीजों के विषय में तो झूठ न बोलना और अमानत गुम्म न करना, ४ झूठी गवाही न देना ।
३-मालिक की इजाजत के सिवाय किसी की चीज पर अपनी मालिकी न करना अर्थात् चोरी न करना ।
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