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और अनर्गलशब्दों का प्रयोग कर तथा उत्तम पदार्थों को खाकर मानव . जीवनको इतिश्री तक पहुंचाने वाले कितने हैं ?
पहिले समय के साधु अपने कर्मक्षेत्र-तप जप ज्ञान ध्यान-ब्रह्मचर्य -आतापना विनय आदि योगों में विचर कर अनेकानेक तरह की सक्तियाँ प्राप्त करते थे और उनके बलसे अपने शासनकी ध्वजा पताका फहराते थे।
। आत्मशक्ति ॥ शास्त्रोमें प्रसिद्ध है कि चार ज्ञान के धारक उसी जन्म में जिनकी मोक्ष होनेवाली है, ऐसे श्रीगुरु गौतमस्वामी जब सूर्य की किरणोंका सहारा लेकर अष्टापद पर चढे तब वहां जो १५ सौ तपस्वी तप कर रहे थे, उन्हों ने उनके चमत्कार को देखकर श्रद्धापूर्वक उन को प्रणाम कर अपने गुरु मान लिये | नीचे उतरने पर उन सबने हाथ जोडकर पूछा प्रमु! हम १५ सौ तापम ५००-५०० सौ कि टुकडी करके यहां विजन जंगल में रहते हैं। अनेक प्रकारकी तपस्या करके सूखे फल फूल खाते हैं, तो भी१-२-३पावडीसे ऊपर नहीं जा सकते । और हमारे देखते ही देखते आप तुच्छ सी वस्तु का सहारा लेकर ३२ कोसके ऊंचे इस पहाड के शिखर पर कैसे चढ गये १ । क्षीराव लब्धिसंपन्न गणधर महाराज ने बड़े प्रेमसे सकाम और निष्काम तपका स्वरूप समझाकर कहा-जो तप सिर्फ आत्मकल्याणके लिये किया जाता है, और जिसमें ज्ञानयोग की मुख्यता होती है, उस निष्काम अर्थात् इच्छारहित तपके प्रभाव से जीव में अणिमा; महिमा गरिमा, लघिमा, प्रामि, प्राकाम्य, ईशत्व, वर्शित्व, यह आठ प्रकारकी लब्धियां उत्पन्न होती हैं !
अणिमा महिमा चैव, गरिमा लधिर्मों तथा । प्राप्तिः प्राकाम्य॑मीशत्वं भवन्ति चाष्टसिद्धयः ।। १ ।।
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