Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 38
________________ किसी भादमीको कहें हमजो कुत्ता । तो मुंहपर वहीं दे पलटकर तमाचा । कहा उससे लुकमान ने बात यह है ।। ___ खुली बात है कुछ मुइम्मा नहीं है । यह माना है बेशक वफादार कुत्ता ।। बडा जाँ नीसार और गमसार कुत्ता । फकत आदमी पर है यह जानेसारी ।। मगर कौमकी कौम दुश्मन है मारी । यह रखता है दिलमें मुहब्बत पराई ।। खटकते हैं इसकी निगाहोंमें माई । नजर आवे इसको अगर गैर कुत्ता ।। तो फिर देखिये इसका तौरी बदलना ।। न जिसने कमी कौमको कौम माना । कहे क्यों न मरदूद उसको जमाना ?॥ बुरा क्यों न मानेगे अहते हमीयत । कि-औरोंसे उलफत सगोंसे अदावत ।। ॥ विमर्श--परामर्श.॥ भारत वर्षमें शुमकार्यों के लिये रुपये की कमी नहीं है, किन्तु है.. लोगों में देशमक्ति तथा परोपकारी मनुष्यों का अभाव है, जिनके विना हम लोगोंको समितियों तथा सुधारके कार्योंमें बाधा पडती है । "शाम्रो" में विद्यादान सबसे उत्तमदान कहा गया है इसी लिये जो लोग इस पुण्यकार्य अर्थात् सार्वजनिक शिक्षा प्रदान का यत्न करेंगे वह वास्तव में धर्मात्मा कहे जा सकते हैं। मारत सन्तान अपने दान एवम् उदारता के लिये प्रसिद्ध है । पुराने भनमन्दिर आदि चारो ओर ढहादामला Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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