Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 37
________________ बाटो को सहन करती हुई भी पात्र बन कर संसारकी स्वार्थसिद्धि करती है। ___ और भी सुनिये, कपास के डोडोंको तोड कर घूप में और घूल में फैंक देते हैं, उसकी अस्थिये तोडकर सार निकाल लिया जाता है, उस सारमूत कपास. को भी घूप में फेंक कर खूब तपाया जाता है । मार मार कर इसके पीछे पीछे जुदे किये जाते हैं, यंत्र में वीली जाती है, पिता-पुत्र का आजन्म वियोग किया जाता है, लोहे की शूलीपर चढाया जाता है, अनेक औजारों से मारी पीटी जाती है तो भी वह उपकारी पदार्थ वस्त्र बन कर कुल संसार भरके नरनारियोंके गुप्त प्रदेशों को ढकती है । तो अरे-निसार ! अरे संसारसार जीवन ! मनुष्य ! सचेतन होकर अमूल्य मानवभव से कुछ भी निज पर का उपकार न करेगा तो तुझे और क्या कहें ? एक कविता नीचे दर्ज है उसे सुनता जा बाद तेरी मरजी मनुष्य जन्म पाय सोवत विहाय जाय, खोवत करो रनकी एक एक घरी है ॥ किसीने यह लुकमान से जाके पूछा जरा इसका मतलब तो समझाइयेगा। जमाने में कुत्ते को सब जानते हैं, वफादार भी उसको सब मानते हैं, ये करता है जो अपने मालिक पे कुरबाँ, खिलाना है बच्चों का घर का निगाहबाँ ।। भरा है यह खूने महब्बत रगों में, न देखा सगों में जो देखा सगों में ।। पडे मार खाकर भी यह दुम दबाना, कि दुशवार हो जाय पीछा छुडाना ।। जगत्में है मशहूर इसकी भलाई । मगर नाममें है क्या इसके बुराई ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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