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इस बात को सुनकर वह सबके सब तपस्वी श्रीगुरु गौतम स्वामीजी के पास दीक्षित हुए गणधर महाराज ने सिर्फ एक ही पात्र में क्षीर लाकर उन सब को खिलाई । उन १५०० मनुष्यों को गौतम गुरुने उतने पात्रकी खीर से ही तृप्त कर दिया । इस बनाव को देख कर उन्होंने बहुन लाभ उठाया । ऐसे ही कहते हैं राजा विश्वामित्र अपने सैनिकों को साथ लेकर वशिष्ठ ऋषि के आश्रम में मये | ऋषिने राजाको भोजन देना चाहा, राजान इनकार करते हुए कहा मैं अपने सहचारियोंको भूखा रखकर अकेला भोजन नहीं करूंगा | वशिष्ट बोले हम तुम सबको अपना अतिथि बनाते हैं, राजा ने हंस कर कहा आप इस छोटीसी झोपडीमें रहकर असंख्य मनुष्य और पशुपक्षियों को क्या खिलायेंगे?, वशिष्ठ ने कहा तुम निश्चित रहो हम सभी अतिथियोका सत्कार करेंगे । निदान सभीने ऋषिका न्यौता स्वीकार करके स्नान किया । इधर ऋषिजीने अपनी छोटी झोंपडीमेंसे विविध प्रकार के स्वादिष्ट, रोचक, पाचक भोजन देकर राजाको और उनके साथके असंख्य मनुष्यों को तृप्त किया |
सिंहावलोकन। पूर्वकालके साधु संन्यासी लोग ऐतिहासिक विज्ञान में, पौराणिक विज्ञान में, पदार्थ विद्यामें, षट् दर्शनोंके स्वरूप परिज्ञानमें, धर्मोपदेश देने में, नये नये ग्रन्थों के निर्माण करने में, योग विद्या, ब्रह्म विद्या, छात्रकला, नक्षत्रचाल, भूतप्रेतों की विद्या, संपत्तिशास्त्र, कृषिवाणिज्यकौशल्य, नीतिशास्त्र, राशिविद्या, सादिविषापहारि मणिमंत्रौषधि परिज्ञान, देवाकर्षणविद्या, प्राणायाम, राजयोग,-पूर्वपक्ष उत्तरपक्ष द्वारा, वाद जयपराजय, संसारयात्रा, तीर्थयात्रा, वगैरह सत्कार्योंमें लगे रहते थे, आज उन सर्व बातों को ताला लग रहा है । विद्याओं के बदले व्यापार, ऐति हासिक शास्त्रों के बदले नवल कथायें, पौराणिकादि परिज्ञान तो नामशेष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com