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अत एव पुत्रको चरित्रवान् बनाने के लिये चरित्र गठन पर ध्यान रखना मातापिताका प्रधान कर्तव्य है ।
सम्राट से लेकर एक सामान्य किसान के बालक को अपने व्यवसाय में सफलता प्राप्त करने के लिये ज्ञान और चरित्र की अत्यन्त आवश्यकता है । इतने विवेचन से सिद्ध हुआ कि क्या राजकुमार और क्या किसान के बालक दोनों को शिक्षित होना बहुत आवश्यक है ।
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अनेक व्यक्तियोंकी धारणा है कि पैतृक व्यवसाय अथवा किसी अन्य व्यवसाय में शिक्षा की आवश्यकता नहीं हैं । मैं पूछता हूँ कि मानव समाज को अज्ञान के घोर अन्धकार में रखनेका किसे अधिकार है १ किसान के बालक और राजकुमार के अन्तःकरण में जिस प्रमाण से ज्ञानप्रभा प्रकाशित होती है उसी परिमाणानुसार हमारे कार्यकी सिद्धि होती हैं । चरित्रवान किसान का बालक क्या चरित्रवान् राजकुमारके समान सुन्दर नहीं हैं ? तब फिर एक को शिक्षा देकर दूसरे को उससे वंचित रखनेवाले तुम कौन हो ? यह बात अवश्य स्वीकार की जा सकती हैं कि व्यवसायसंबंधी शिक्षा सबको एकही सी नहीं दी जासकती । राजकुमारको राजनीतिसंबंन्धी, और किसान के बालक को कृषिसंबन्धी ही शिक्षा देना उचित हैं, किन्तु जो शिक्षा ज्ञानवान् बनाती और चरित्र गठन करती है वह सब एक ही ढंगकी देना उचित है, इसी शिक्षा का नाम शिक्षा है ।
॥ परमार्थ और देशसेवा ||
खान की मिट्टी जिसको खान में से खोदकर उसके टुकडे टुकड़े किये जाते हैं, इतना ही नहीं नरन् उसको गधों पर चढाया जाता है; पानीमें मिजो कर उसे पैरोनीचे मन्थन किया जाता है, चक्रपर चढाकर खूब घुमाया जाता है तो भी शाबासी है उस सहनशील जाति को कि जो इतने
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