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होते थे, धन व्यय करने में उदारता प्रकट करते थे, इससे वह अपने समाज के ह्रास के कारणों को देखते ही बत्काल उपाय करलेते थे । आज कल यद्यपि लोग धनसम्पत्ति से सुखी हैं तो भी तादृशज्ञान सम्पदा के न होने से देशका जैसा चाहिये वैसा भला नहीं हो सकता ।
हालां कि आज मी भारत के दानवीर दान देने में अपनी प्राचीन उदारता से पीछे नहीं हटे | ऐतिहासिक साधन साक्षी देते हैं कि हमारा मह प्रम्य संसार पैसा खर्चने में किसी तरह से भी हाथ पीछे नहीं हटाता।
आदर्शजीवन ।। यदि कोई हमसे पूछे कि जीवन का अलङ्कार क्या है ? तो हम निःसंकोच होकर कह सकते हैं कि चरित्र ही जीवन का एक मात्र अलं कार है। चरित्र आत्मा की एक विशेष शक्ति है, इसी शक्ति के प्रमाव से हमारी नीच भावनाओंका दमन होता है, हृदय के अपवित्र भाव दूर होते हैं, हम पवित्रता प्राप्त करनेके लिये व्याकुल हो उठते हैं, और सत्यकी खोज में प्राण तक देनेको तैयार हो जाते हैं । इसी शक्तिबल के प्रभाव से हम भीषण प्रलोभनोंका सामना करने के लिये खडे होजाते हैं, सम्राट की अपकृपा से भी विचलित नहीं होते, और कठोर जीवन संग्राम में जयलाभ प्राप्त कर सकते हैं । संसार में जितने प्रतिष्ठित व्यक्ति होगये हैं वे सब इसी अद्भुत शक्तिबल के प्रभाव से पूज्य हुए हैं । धन
और ऐश्वर्य द्वारा किसी व्यक्ति ने किसी कालमें भी महत्ता प्राप्त नहीं की। चरित्र ही महत्ता प्राप्त करने का एक मात्र सोपान है ।
यह ईश्वर प्रदत्त शक्ति है, यही विश्वका नियंता है, इसी के मयसे चन्द्र सूर्य उदय होते हैं, वावु संचालन करती है, इसी से निर्मल पवित्रता का स्रोत प्रवाहित होकर पापमय जगत को स्वर्गभूमि में परिणत कर देता है। वही इस अद्भुत शक्ति का जन्मदावा है। नहीं तो क्षीण
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