Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 19
________________ ये दो ऋचाएँ हैं । पहिली ऋचासे जीव का सर्वथा अभाव प्रतीत होता है, और दूसरीसे जीव की सिद्धि भी हो सकती है । साधक और बाधक प्रमाणों के मिलनेसे तुहारा मन संशयान्दोलित होर हा है, परन्तु इन ऋचाओं का यथार्थ अर्थ तुम्हारे ख्यालमें नहीं आया, सुनो हम तुमको इनका परमार्थ समझाते हैं । ___“ विज्ञानघन" यह आत्मा का नाम है | जब आत्मा घटपटादि किसी भी चीज को देखती है तब वह उपयोग रूप आत्मा इन्द्रियगोचर पदार्थों को देखती सुनती है या किसी भी तरहसे अनुभव गोचर करती है, उसवक्त उन अनुभवगोचर पदार्थोसे ही उस उस उपयोगरूप से पैदा होती है और उन पदार्थों के नष्ट होजानेपर या दूर होजानेपर वह उसरूप अर्थात् घटपटादि पदार्थ परिणब आत्मा उस उस उपयोग से हट जाती है, उस हालत को लेकर कह सकते हैं कि उन उन घटपटादि भूतों से अर्थात् भूतविकारों से उपयोगरूप वह आत्मा उत्पन्न होती है, उनके विखर जाने पर उनमेंही लय होजाती है । ___ "न प्रेत्य संज्ञाऽस्ति " पहिले जो घटपटादि उपयोगात्मक संज्ञा थी, फिर वह कायम नहीं रहती, उन पदार्थों से हटकर आत्मा अन्यान्य जिन र पदार्थों में उपयोगरूप से परिणत होती है उस उस पदार्थ के रूपसे नई संज्ञा कायम होती है, इस समाधान से और प्रमुके जगदद्वैत साम्राज्य के देखनेसे इन्द्रभूति (गौतम ) ने दीक्षा स्वीकार करली । इन्द्रभूति वीर परमात्माके प्रथम शिष्य हुए । इस बात को सुनकर अग्निभूति, वायु ति आदि सर्व पण्डित अपने अपने परिवार को लेकर आये । मनोमत संशयों को निवृत्त करके उन सबने जगद्गुरु महावीरदेव के पास संयम अखत्यार किया । प्रमुने इन एकादश मुख्य पंडितों को अपने गणघर कायम किये । और गच्छ का मालिक सुधर्मा स्वामीको ही बनाया | ___ मौतमस्वामी प्रमुके निर्वाण के दूसरे ही दिन केवली होकर १२वर्षतक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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