Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ १५ मध्यरात्रि जिन जनमिया, पूर्ण पुण्य फल भोग ।। २ ।। शान्त दिशा सब दीपती, त्रिमुवन हुओ प्रकाश । छप्पन दिशि कुमरी मिली, आई चित्त हुलास ।। ३ ।। [देश-त्रिताल-लावणी] जनमें जिनदेव-मति-श्रुत-अवधि-ज्ञानी पूरण जस पुण्य की अद्भुत एह निशानी ।। ज० मड थान से छप्पन दिशि कुमरी मिल आवे, देखी प्रमु झगमग ज्योति अति हर्षावे । अधोलोक की आठ संवर्तक वायु चलावे, एकयोजन भूमि अंदर अशुचि उडावे । वरसावे आठ ऊर्ध लोक कुमरी फूल पानी ।। ज० १ ।। पूरख दक्षिण पश्चिम उत्तर इम चारे, कम से अठ अठ कुमरी निज काज संभारे । दर्पण कलशालि पंखा चामर धारे, चउ विदिशि की चउ दीप धर उजीयारे । चउ मध्य रुचक की आवे कुमरी सयानी ।। ज० २ ।। कदलीघर तीन बनाय विधि से करती, मर्दन पूरवघर स्नान दक्षिणे धरती | उत्तर पर रक्षा बन्धन को अनुसरती, जिन जिन अम्बा नमी माव पाप को हरती । जीवो चिरकाल जिनंद वदे मुख वानी ।। ब० ३ ।। इम छ-पन दिशि कुमरी प्रमुके गुण गाती, करके निजकल्प अनादि सदन निज जाती । घन्य देवजन्म हम प्रमुमक्ति से मनाती, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108