Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 24
________________ वीर प्रमु सज होवे, आतम लक्ष्मी जोवे । वल्लभ हर्षमन दीक्षा जिन पानी रे ।। व० ६ ।। अनेकानेक प्रकार के दुस्सह कष्टों को समतापूर्वक सहन करके केवलज्ञान का पाना, देव देवेन्द्र, राजा, महाराजा, सेठ, साहूकार और १२ ही पर्षदाओं का एकत्र होना, धर्मोपदेश द्वारा तीर्थस्थापना का करना, अन्यान्यदेशों में फिर कर अनन्त बहिरात्माओंको अंतरात्मा बना . कर उन के हृदयों में धर्मवीजका बोना, यावत् निर्वाण के पहिले पहिले के चरितांश का नाम केवलज्ञान कल्याणक है । सुनिये-ध्यान दीजिये ( दोहा ) संयम शुद्ध प्रभाव से, तीर्थकर भगवान । दीक्षा समये ऊपजे, मनपर्यव शुभ नाण ॥१।। विचरे देश विदेश में, कर्म खपावन काज । परिषह अरु उपसर्ग को, सहते श्री जिनराज ।।२।। गोसाला गोवालिया, चंड कोसिया नाग । सूलपाणि संगम दिया, सहिया दुःख अथाग ।।३।। सुदि दशमी वैशाख की, उत्तर फाल्गुन जान । शाल वृक्ष नीचे हुओ, निर्मल केवल भान ।। ४ ।। (वसंत-होई आनन्द बहार ) आज आनन्द अपार रे प्रभु केवल पाया । केवल पाया घाती खपाया । आज० अंचली ।। उग्रविहारी जगत में रे, जिनवर जग जयकार रे ।।प्र० १।। धर्मध्यान घोरी बनी रे, ध्यान कुशल लिया लार रे ।।प्र० २।। ध्यान ध्येय ध्याता मिली रे , काढे घाती चार रे ॥प्र० ३।। प्रगटे केवल ज्ञानके रे. प्रगटे आतम सार रे ।। प्र० ४ ॥ आतम लक्ष्मी पामीया रे , वल्लभ हर्ष अपार रं ।। प्र० ५ ॥ बस तीस वर्ष गृहस्थावस्थाके, साढे बारह वर्ष १५ दिन छद्मस्थावस्थाके, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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