Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 23
________________ १६ आतम लक्ष्मी कारण समकित चमकांती | हर्षे वल्लभ प्रभु देख मुख सुख दानी || ज० ४ ॥ नन्दीवर्धन की अनुमति, वरसीदान, पंचमुष्टिलाच, चतुर्थज्ञान की प्राप्ति, साढे बारह वर्ष की अति कठिन तपस्या, विहार और भयंकर परीषह, उपसर्गों की तितिक्षा यावत् केवलज्ञान से पहिले पहिले का जितना वर्णन है वह सब तीसरे दीक्षाकल्याणक में ही समझना चाहिये | विशेष स्पष्टता के लिये नीचे लिखे पाठ को पढो । (दोहा) जाने निज दीक्षा समय, पिण लोकान्तिक देव । कल्पकरी प्रभु बूझवे, करते प्रभुपद सेव ।। १ ॥ जय जय नंदा मद्द है, जगगुरु जगदाधार । धर्म तीर्थ विस्तारिये, मोक्षमार्ग सुखकार ॥ २ ॥ ( लावणी ) वरसी दान देवे जिन - राज महा दानी रे | टेक अंचली ॥ अनुकंपा गुणधार, जन को द्वारिद्र टार | जिन हाथे दान ग्रहे भव्य तेह मानी रे ।। व० १ ।। एक कोडी आठ लाख, एक दिन दान आख । संवछर तक इसविधि दान मानी रे || व० २ ॥ वर्ष दोय होए पूरे, पूरे प्रतिज्ञा में सूरे । हवास वर्ष तीस रहे प्रभु ज्ञानी रे ।। व० ३ ॥ नगर सजावे राय, थावे इन्द्र हाजर आय | विधि से करावे स्नान इन्द्र इन्द्रानी रे || व० ४ ॥ देव के कलश सारे नृप के कलश धारे । स्नान नन्दिवर्धन करावे हर्ष आनी रे || व० ५ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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