Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 21
________________ १४ भोजन समय में निरखत अतिथि पुण्ययोग युग मुनि हुओ आना || स० ३ ।। धन्य भाग्य मुझ मन में चिंती । निरवद्य आहार पानी दिया दाना || स० ४ ।। जोग जानी मुनि देशना दीनी, पाया समकित लाभ अमाना || स० ५ ।। द्रव्य मारग बतलाया मुनि को । भाव मारग किया आप पिछाना || स० ६ ।। आतम लक्ष्मी कारण समकित हर्ष धरी वल्लभ मन माना || स० ७ ॥ जिनेश्वर देव का माता की कुक्षिसे जन्मना, संसार भर के जीवों को उस समय आह्लादित होना, इन्द्रासनों के चलायमान होनेपर असंख्य देव देवियों का राजा सिद्धार्थ के घर आना, लोकाधार उस बालक को सुमेरु पर्वत पर ले जाना, और जन्मोत्सव करना, पीछे जाकर बालकको माता के पास रखना, मंदार प्रभृति के पुष्पों से प्रभुकी अर्चा करना, धनधान्य से प्रमु के माता पिताओं के निवासगृह की पूर्तिकरना, माता पिता कृतजन्मोत्सव, नामस्थापना, पाठनविधि का उपक्रम तथा युवावस्था में माता पिता के स्वर्गारोहण के पश्चात् अपने बडे भाई नन्दीवर्धन से पूछकर दीक्षा लेने के पहिले पहिल का महावीरका जितना वृत्तान्त देखो उसको जन्मकल्याणक के अन्दर ही समझना चाहिये । जन्मकल्याणक की शुरूआत नीचे की ढाल से होती है । ( दोहा ) 1 जन्म समय जिनदेव के जनपद सुखिया लोक | वायु सुखकारी चले, आनन्द मंगल ओक ॥ १ ॥ चैत्र शुक्ल तेरस मली, ऋक्ष उत्तरा जोग । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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