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संसारमें अनेक उपकारों को करते हुये भूमंडलपर विचरते रहे और पमुके निर्वाण के २० वर्ष पीछे सिद्धि गति को प्राप्त हुए । सुधर्म स्वामी के पाटपर श्रीजम्बूस्वामी बैठे । बस जम्बूस्वामी महाराज ही अन्तिम केवली कहे गये हैं । ___ जम्बूस्वामी का इतिहास परिशिष्ट पर्व भाग पहिले से और साहित्य संशोधक भाग तीसरे से जान सकते हैं ।
पहले इस बात का सामान्यतया उल्लेख हो चुका है कि-जैनधर्म के प्रवर्तक हरएक तीर्थकर की पांच अवस्था विशेष को जैन पारिभाषिक शब्दोंमें कल्याणक कहते हैं । वीर परमात्मा का जीवात्मा नयसार के भवमें सम्यक्त्व से वासित होकर २६ भव अन्यान्य गतियोंमें भोगकर सत्ताईसवें मवमें त्रिशला राणी की कुक्षिमें आकर पैदा हुये, इतने वृत्तान्तका नाम च्यवनकल्याणक है | अनादि काल के अवासित प्राणीने पहिले पहिल मुनि का दर्शन करके किस उच्च आशय से उनका सत्कार किया है किस धर्मप्रीति से वह उनसे वर्ताव करता है, उसका अनुभव करनेवालों के लिये हमारे परमोपकारी गुरुमहाराज की बनाई “ महावीर पंचकल्याणक " पूजा की पहिली ढाल यहां लिखी जाती है
(दोहा) जब से समकित पाइये, तब से गणना आय । वीरजीव नयसार के, भव में समकित पाय || १ ।। (सारंग कहरवा हमे दम दे के चाल ) समकित आतम गुण प्रगटाना, | टेक ।
समकित मूल धरम तरु दीपे । विन समकित न चरण नवि ज्ञाना || स० १ ।।
अपर विदेहे नृप आदेशे । काष्ठ लेने नयसार का जाना ।। स० २ ।।
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