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श्रीसुधर्मस्वामीजी के ही सुपुर्द किया था । गौतमस्वामी और शेष सभी गणधर राजगृही नगरी के रहनेवाले चौदह विद्याविशारद ब्राह्मण थे ।
[॥ तत्त्वज्ञानियोंकी आत्मकथा ॥1 जब श्रीमहावीर परमात्मा को केवल ज्ञान पैदा हुआ उसवक्त वे सब मिलकर नगर के बाहिर यज्ञ कर रहे थे । उसी अवसरमें महावीरको केवल ज्ञान पैदा हुआ था अत एव महा वीर प्रभुका ज्ञानोत्सव करने के लिये आकाश मार्गसे उतरते हुये देवता ओं को देखकर गौतमादि ब्राह्मण और उनके शिष्य पंक्ति के ४४०० ब्राह्मण इस बात की निहायत खुशी मनाने लगे कि हमारे किये इस यज्ञ के प्रभाव से ये सब देवता आ रहे हैं । परन्तु वे जब सर्व यज्ञ पाटक को छोडकर आगे बढे तो सबको संशय हुआ कि ये देवता कहाँ जाते हैं ? लोगोंसे पूछा तो मालम हुआ कि ये सब सर्वज्ञ को वन्दना करने जारहे हैं । यह सुनकर इन्द्रभूति को बडा आमर्ष हुआ । वह सोचने लगा-संसार में आज मेरे सर्वज्ञ होने पर भी दूसरा सर्वज्ञ है कि जिसके पास ये सब दौडे जारहे हैं ? बडे आश्चर्य की घटना तो यह है कि इस वक्त परमपवित्र यज्ञमण्डप भी इन्हे नजर नहीं आता ! ! क्या जाने क्या कारण है कि यज्ञपर इनको अन्तर प्रेम ही नहीं जागता ? | अस्तु जैसा वह सर्वज्ञ होगा वैसेही ये देवता भी होंगे । भ्रमर को सुगन्धित फूलोपर और कौओंको निम्बकी निंबोलियों पर ही प्रेम हुआ करता है । ___परमात्माके दर्शन कर वापिस लौटते हुए लोगों को इन्द्रभूति ने कुछ हंसकर पूछा क्यों भाई ! सर्वज्ञ देखा ? कैसा है ? जवाबमें उन्हों ने सिर हिलाकर कहा-क्या पूछते हो ? तीन लोक के सर्व जीवात्मा गिनती करने लगें, आयुकी समाप्ति न हो ! गणित को पराधसे भी आगे बढाया जाये तो भी उस ज्ञानसागर के गुणों की गणना करना असंभव
और अशक्य है । अरे आश्चर्य । महदाश्चर्य ! ! वाहरे धूर्त ! ! किसीने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com