Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 15
________________ आपके शासन की ध्वजा संप्रति नरेशने और कुमारपाल सोलंकीने बहुत दूरतक फरकाई थी। [ प्रासंगिक रथ चक्रके समान गतिवाले इस संसारमें जिस जिस समय धर्म कियाओंका हास होता है उस उस समय भव्यात्माओं के पुण्य प्रकर्षसे संसार में उत्तम पुरुषोंका जन्म होता है । वह उत्तम जीवात्मा तीर्थकर तीर्थनाथ विश्वनायक कहे जाते हैं । जिन विशुद्धात्माओं ने इस पदवी पाने के तीन भव पहिले प्रकृष्ट तप आदि बीस अथवा उनमें से कतिपय सत्कृत्यों को सतत सेवन करके तीर्थकर नामकर्म दृढ बांधा हुआ होता है वही महापुरुष इस पदवी को हासिल कर सकते हैं । __ये अवतारी पुरुष जिस जन्मदात्री माता की कुक्षि में गर्भरूपसे स्थित होते हैं, वह माता इन भावी भाग्यशालियों की सूचनारूप चतुर्दश स्वप्नोंको देखती है। तीर्थकर देवों की पांच अवस्थाओं का नाम कल्याणक है, जिन के नाम यह हैं (१) यवनकल्याणक, २-जन्मकल्याणक, ३-दक्षिाकल्याणक, ४-केवलज्ञानकल्याणक, ५-निर्वाणकल्याणक । ___ इन पांचही कल्याणकों में देवेन्द्रादि असंख्य देव देवी आकर देवाधिदेव परमात्मा के गुणग्राम भक्ति शुश्रूषा करते हैं । ___ जन्मकल्याणक के समय सर्व इन्द्र परमेश्वर को सुमेरु पर्वत पर ले जा कर उन का स्नात्र महोत्सव करते हैं और बडी भक्ति से पूजा रचाते हैं । तदनन्तर बडी हिफाजत से उन्हें माता के पास रखकर अपने उपकारी के जन्म की खुशिये मनाते अपने २ स्थानों में चले जाते हैं | अन्य भी अनेक प्रसंगों पर देवेन्द्र, महर्द्धिक देव, और देविये प्रमु के दर्शन और सदुपदेश का लाभ लेने को आया करते हैं । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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