Book Title: Mahavir Shasan
Author(s): Lalitvijay
Publisher: Atmatilak Granth Society

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Page 16
________________ केवल ज्ञान के बाद जब समवसरण की रचना होती है तब देवेन्द्र चक्रवर्ती सपरिवार उपासना भक्ति में हाजिर होते हैं । ऐसे धर्म साम्राज्यशाली देवाधिदेव एक एक अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी कालमें चौबीस चौवीस होते हैं । वर्तमान चौवीसीमें-१-श्रीक्रषभ देवी, २-श्रीअजितनाथजी, ३-श्रीसंभवनाथजा, ४-श्री अभिनन्दनजी, ५-श्रीसुमतिनाथजी, ६-श्रीपद्मप्रभुजी, ७-श्रीसुपार्श्वनाथर्जा, ८-श्रीचन्द्रप्रमुजी, ९-श्रीमुविधि नाथजी, १०-श्रीशीतलनाथजी, ११श्रीश्रेयांसनाथ जी, १२-श्रीवासुपूज्यजी, १३-श्रीविमलनाथजी, १४श्रीअनंतनाथजी १५-श्रीधर्मनाथजी, १६-श्रीशान्तिनाथजी, १७-श्रीकुंथुनाथजी, १८-श्रीअरनाथजी, १९ श्रीमल्लिनाथजी, २०-श्रीमुनिसुवतस्वामीजी, २१-श्रीनमिनाथजी, २२-श्रीनेमिनाथजी, २३-श्रीपार्श्वनाथजी, २४-श्रीवर्द्धमानस्वामी । ___ इनमें से जो अन्तिम तीर्थकर वर्द्धमान स्वामीजी हैं, उनका प्रसिद्ध नाम है महावीरदेव, वर्तमान कालमें जो शासन चलता है, इस के संचालक यही प्रमु हैं । इस देवाधिदेव के एकादश गणधर थे, जिनके नाम १-इन्द्रभूति ( गौतम स्वामो) २-अग्निभूति, ३-वायुभूति, ४व्यक्त, ५-सुधर्म, ६-मण्डित, ७-मौर्यपुत्र, ८-अकंपित, ९-अचलम्राता, १०-मेतार्य, ११-प्रभास, यह ११ ही मुनि श्रीमहावीर के मुख्य शिष्य थे | महावीर परमात्मा के निर्माण के दूसरे ही दिन गौतमस्वामी को केवल ज्ञान पैदा हुआ था । कुछ वर्षों के पीछे सुधर्मा स्वामी को केवल शान पैदा हुआ था। ___ इन्द्रभूति (गौतम) और सुधर्मास्वामी के अलावा नव ही गणघर महावीर प्रमु की हयाती में ही मोक्ष चले गये थे । गौतमस्वामी की अपेक्षा मी श्रीसुधर्मस्वामी दीर्घायु थे इस लिये प्रमुने गण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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