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का परमधर्म समझा जाता था । " वर्णानां ब्राह्मणो गुरु: " इस वाक्यको ईश्वर वाक्यसमान अटल अबाध्य माना जाता था ।
॥अवतारी का आगवन ।। उस समय बब कि मारतवर्ष की धार्मिक तथा सामाजिक अवस्था बगै ही बुरी थी । सुधारे का बालसूर्य दुर्दशारूपी रात्रीका नाश करने के, लिये उदय हुआ ! ! ! ।
क्षत्रियकुंण्ड नगर जो कि इक्ष्वाकु राजाओं की राजधानी थी, वहां विक्रम संवत् से ५४२ वर्ष पूर्व सिद्धार्थ राजा की स्त्री त्रिशला की कुक्षिसे एक प्रतापी बालक का जन्म हुआ, जिसको भारतवर्षमें ही नहीं बल्कि त्रिलोकी भरमें धर्म की-शुभकर्म की नीति की-आर्य रीति की-पारमार्थिक सुखों की एवं शुभवासनाओं की वृद्धि करनी थी। उस बालक का नाम “ वर्धमानकुमार रक्खा गया, परन्तु वह बाल्यावस्था में प्रसन्नतासे परीक्षापूर्वक इन्द्रादि देवताओं के दिये हुए वीर अथवा महावीर नाम से ही अपने जीवन के अन्त तक प्रसिद्ध रहा | महात्मा महावीर चन्मसे ही सूर-बीर-व गंभीर-मातापिता के परम भक्त-प्रजावत्सलदानशौण्ड और वदान्य थे । ___ आप तीन ज्ञानसंयुक्त थे, सर्व विद्यापारंगत थे, तथापि मोहवशीभूत होकर आपके मातापिता आपको शास्त्राध्ययन कराने के लिये किसी पाण्डित के पास ले गये, आप मनमें अहं कृति न कर सब कुछ देख रहे थे. जब यह घटना इन्द्रमहाराजने देखी तो वह मनही मन हसते हुए वहां आये जहां कि वीर कुमार पण्डित के मकान पर पा रहे थे, इन्द्र ने अपने ज्ञान से देखा कि इन इन बातोंका पण्डित को जन्म से संशय है तो, उन्हीं बालों की वार परमात्मा से पृच्छा की, परमात्मा तो अपौस्वेयज्ञानी थे अर्थात् सामान्य मनुष्यों से असंख्य गुणाधिक ज्ञानशक्ति के धारक थे, इन्द्र के पूछने पर बड़ी गंभीरता से उन प्रश्नों का आपने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com